Lord Jagannath Bhog: विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई 2022 को निकलेगी. इसे देखने के लिए न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी भक्तजन आते है. जगन्नाथ भगवान की महिमा ऐसी है कि इनके रथ मात्र देख लेने से जीवन के पाप धुल जाते हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चारों धाम पर बसे तो सबसे पहले बदरीनाथ गए और वहां स्नान किया, इसके बाद वो गुजरात के द्वारिका गए और वहां कपड़े बदले. द्वारिका के बाद ओडिशा के पुरी में उन्होंने भोजन किया और अंत में तमिलनाडु के रामेश्वरम में विश्राम किया.जगन्नाथजी को खिचड़ी का भोग प्रिय है. इसके पीछे एक कथा बताई गई है आइए जानते हैं.


भगवान से बेटे जैसा स्नेह करती थी भक्त


भगवान जगन्नाथ की एक परम उपासक भक्त थीं कर्मा बाई, वो उन्हें अपने पुत्र की तरह कर्मा बाई काफी वृद्ध महिला थीं लेकिन हर रोज भगवान जगन्नाथ का भोग लगाना नहीं भूलती थीं. एक दिन उन्होंने सोचा कि आज फल-मिठाई की जगह भगवान जगन्नाथ को अपने हाथों से बने प्रसाद का भोग लगाया जाए. लेकिन उनके मन में शंका भी थी कि क्या वह उनको पसंद आएगा भी या नहीं.


ऐसे खिचड़ी बनी जगन्नाथजी का प्रिय भोग


भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई की मन इच्छा को जान गए और खुद उनके सामने प्रकट होकर भूख लगी होने की बात कही. कर्मा बाई ने झटपट  खिचड़ी बना दी. भगवान जगन्नाथ ने उसे बड़े चाव से खाया और कर्मा बाई से कहा कि मुझे यह बहुत पंसद आई है अब से वे रोज खिचड़ी खाने आएंगे. एक दिन एक महात्मा कर्माबाई के पास आकर बोले कि बिना स्नान के पूजा करने और भोग लगाने नहीं लगाना चाहिए. अगले दिन कर्माबाई स्नानादि करके खिचड़ी बनाई लेकिन उसमें देर हो गई. तभी भगवान पहुंचे, और बोले शीघ्र करो मां, मंदिर के कपाट खुल जाएंगे. जगन्नाथ जी ने जल्दी-जल्दी खिचड़ी खाकर मंदिर की तरफ दौड़ पड़े लेकिन उनके मुंह पर जूठन लगी रह गई थी.


भक्तिन के जाने के बाद पुजारी ने बनाई खिचड़ी


मंदिर के पुजारी ने कपाट खोलते हुए देखा कि भगवान जगन्नाथ के मुंह पर खिचड़ी लगी हुई है.जब पुजारी ने भगवान से इसकी वजह जानीं तो भगवान ने सब कुछ बता दिया.एक दिन कर्माबाई की मृत्यु हो गई. पुजारी ने  देखा कि भगवान जगन्नाथ जी आँखों से अश्रुधारा बह रही है. पुजारी के पूछने पर भगवान ने उन्हें बात बताई और कहा कि अब मुझे कौन रोजाना खिचड़ी खिलायेगा. इस पर पुजारी ने स्वयं रोजाना खिचड़ी खिलाने का वचन दिया. तभी से जगन्नाथ जी को खिचड़ी का भोग लगाने की परंपरा है.


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