Jagannath Puri Rath Yatra: पौराणिक मान्यता के अनुसार जब लोग चार धामों की यात्रा पर जाते हैं तो उन चार धामों में से एक धाम जगन्नाथपुरी (Jagannath Puri) भी है. इसके प्रति लोगों की बहुत आस्था है. इसे श्री क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर भगवान कृष्ण (Lord Krishna) ने अपनी लीला दिखाई थी. इसलिए आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन बड़े हर्षोल्लास से रथ यात्रा (Rath Yatra) का आरंभ किया जाता है. इस बार की रथ यात्रा (Puri Rath Yatra) आज 1 जुलाई से शुरू हो गई है और यह रथ यात्रा 12 जुलाई तक चलेगी.


भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Jagannath Puri Rath Yatra) में 3 रथ शामिल किए जाते हैं. जिसमें श्री बलराम जी का रथ लाल और हरे रंग का होता है. जो सबसे आगे रहता है. बीच में उनकी बहन सुभद्रा का रथ होता है जो काले और नीले रंग का होता है. भगवान जगन्नाथ का रथ (Lord Jagannath Rath) सबसे पीछे चलता है जो लाल और पीले रंग का होता है.


इसलिए रहती हैं भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी (The idol of Lord Jagannath remains incomplete)


पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में भगवान जगन्नाथ, बलराम तथा सुभद्रा जी की मूर्तियां बनाने का कार्य विश्वकर्मा जी ने स्वयं अपने हाथों में लिया था. साथ ही तत्कालीन राजा से यह शर्त रखी थी कि जब तक मूर्तियां बनाने का कार्य पूरा नहीं हो जाता है, उनके कक्ष में कोई प्रवेश नहीं करेगा लेकिन राजा ने विश्वकर्मा की इस शर्त का उल्लंघन किया. वे अपने उत्साह को रोक न सके और उन्होंने कक्ष का दरवाजा खोल दिया. जिससे विश्वकर्मा जी रुष्ट हो गए और उन्होंने मूर्तियों का काम अधूरा छोड़ दिया. इस वजह से रथयात्रा (Rath Yatra) में शामिल होने वाली भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों में हाथ पैर और पंजे नहीं होते हैं.



 


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