Ratha Yatra Shri Jagannath Temple: भगवान जगन्नाथ का मंदिर उड़ीसा के पुरी में स्थित है. इस पवित्र मंदिर को भारत के चार पवित्र धामों में से एक माना जाता है. यह मंदिर अति प्राचीन है. मान्यता है कि यह पवित्र मंदिर 800 वर्ष से भी अधिक पुराना है.  इस मंदिर में विष्णु अवतार भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जगन्नाथ रूप में  विराजमान हैं. इस मंदिर में भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा-अर्चना की जाती है. रथ यात्रा में इन तीनों के ही अलग अलग रथ सजाए जाते हैं. जिनकी भव्यता और विशालता देखते बनती हैं. इस रथ यात्रा में सबसे आगे बलदेव यानि बलरामजी का रथ चलता है. इसके बाद देवी सुभद्रा और सबसे अंत में भगवान श्रीकृष्ण यानि जगन्नाथ का रथ चलता है.


तालध्वज रथ
भगवान जगन्नाथ की रथ में सभी देवगणों के रथ अलग अलग होते हैं जिनके नाम हैं. जैसे सबसे आगे चलने वाले बलदेव जी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं. इनके रथ का रंग लाल और हरा होता है.


दर्पदलन रथ
बलदेव के रथ के पीछे देवी सुभद्रा का रथ चलता है. इस रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है. इस रथ में काले, नीले और लाल रंग का प्रयोग किया जाता है. यह भी भव्य और विशाल होता है.


गरुड़ध्वज
सबसे पीछे भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जगन्नाथ के रूप में रथ पर विराजाते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहा जाता है. ये पीतांबर वर्ण और लाल रंग का होता है. ये बेहद विशाल और भव्य होता है. इस रथ की ऊंचाई करीब 45.6 फीट होती है.


अक्षय तृतीया से आरंभ होती हैं रथ की तैयारी
जगन्नाथ रथ यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया की पवित्र तिथि से ही आरंभ हो जाती हैं. पंचांग के अनुसार रथ निर्माण का आरंभ अक्षय तृतीया की तिथि से होता है.


नीम की लकड़ी से तैयार होता है रथ
विशेष बात है कि अक्षय तृतीया की तिथि से जहां रथ के निर्माण का कार्य प्रारंभ होता है वहीं रथ निर्माण के लिए लड़की का चयन बसंत पंचमी के दिन से ही प्रारंभ हो जाता है. रथ के प्रयोग में लाई जाने वाली लकड़ी को ‘दारु’ कहा जाता है. विशेष बात ये है कि रथ के लिए लकड़ी चयन की जिम्मेदारी जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति की होती है. रथ निर्माण में समय सीमा का विशेष ध्यान रखा जाता है. रथ निर्माण में किसी प्रकार की धातु का प्रयोग नहीं किया जाता है. मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.


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