व्यक्ति के जीवन में बृहस्पति यानि गुरु की बहुत अहम भूमिका होती है. कुंडली के पंचम में भाव में यह अलग अलग लग्न में अलग अलग फल प्रदान करते हैं. मान्यता है कि व्यक्ति जीवन में सफल होगा की नहीं इसका पता भी गुरु की स्थिति से ही लगाया जाता है. सफलता पाने के लिए कुंडली में गुरु का शुभ होना बेहद जरूरी माना गया है. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि गुरु मजबूत स्थिति में न हो तो व्यक्ति को कर्म का पूरा फल नहीं मिलता है. गुरु कमजोर हों तो सम्मान में कमी और उच्च पद प्राप्त करने में अड़चन आती है.


पंचम भाव में गुरु का फल
पंचम भाव मे गुरु व्यक्ति को अच्छा दयालु बनाता है. समाज के परोपकार के लिए हमेशा तैयार रहता है. ऐसा व्यक्ति दानी होता है. समाज में ऐसे व्यक्ति का सम्मान होता है, उसे लोगों का प्यार मिलता है. इनमें नेतृत्व की क्षमता होती है ऐसे व्यक्ति उद्योगपति या समाजसेवी होते हैं.


लग्न में गुरु का फल
मेष लग्न: गुरु नवम व द्वादश भाव के स्वामी होते हैं, इस लग्न में पंचम भाव मे सिंह राशि आती है जो राजयोग का सुख प्रदान करता है. धन व सम्मान की प्राप्ति होती है.
वृष लग्न: गुरु अष्टमेश व एकादशेश होकर अशुभ फल देते हैं, इसके पंचम भाव में कन्या राशि होती है जो व्यक्ति को ज्ञान के क्षेत्र में सफलता प्रदान करती है. व्यक्ति की संतान अच्छी होती हैं.
मिथुन लग्न: गुरु सप्तमेश व दशमेश हो जाते हैं पंचम भाव तुला राशि स्थित होने के कारण इसके स्वामी शुक्र  होते हैं. ऐसे जातक को मान सम्मान खूब मिलता है. व्यक्ति अच्छे कामों को करने वाला होता है.
कर्क लग्न: गुरु छठे व नवम भाव का स्वामी बनकर मंगल राशि के पंचम भाव मे आता है. मंगल गुरु का मित्र होने के साथ साथ इस लग्न मे दशमेश भी होता है. जिसकी कुंडली में ऐसी स्थिति होती है उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त करता है.
सिंह लग्न: गुरु पंचमेश व अष्टमेश होकर स्वयं की ही राशि मे होता हैं. ऐसे व्यक्ति संतान के मामले में भाग्यशाली होते हैं. संतान सुख अच्छा प्राप्त होता है.
कन्या लग्न: गुरु चतुर्थेश व सप्तमेश होने से दो केन्द्रों का स्वामी बनकर केन्द्राधिपत्य दोष से प्रभावित होता है. यह पंचम भाव मे अपनी नीच राशि मे भी होता है अत: व्यक्ति को अच्छे फल कम मिलते हैं जीवन में संकट बना रहता है.
तुला लग्न: तीसरे व षष्ठेश होकर यह पंचम गुरु शनि की कुम्भ राशि का होता है. यह स्थिति व्यक्ति को जीवन में धार्मिक बनाती है.
वृश्चिक लग्न: गुरु द्वितीयेश व पंचमेश होते हैं. पंचम गुरु स्वराशि मीन में व्यक्ति को लाभ दिलाते हैं, ऐसे व्यक्ति को जीवन सफलता मिलती है.
धनु लग्न: गुरु केन्द्राधिपत्य दोष से प्रभावित होने के बाद भी यह मेष राशि का पंचम गुरु व्यक्ति को श्रेष्ठ संतान प्रदान करती है. संतान से उसे सुख मिललते हैं. जीवन में भी कोई कमी नहीं रहती है.
मकर लग्न: गुरु द्वादशेश व तृतीयेश बनकर पंचम भाव मे वृष राशि का होता है. ऐसे व्यक्ति शिक्षा के मामले में अच्छे होते हैं. संतान भी अच्छी होती है,शिक्षा भी अच्छी होती है. ऐसे व्यक्ति की संतान पढ़ने वाली होती है.
कुम्भ लग्न: गुरु एकादशेश व द्वितीयेश बनता हैं तथा पंचम भाव मे मिथुन राशि का होकर व्यक्ति की संतान योग्य व संस्कारी होती है. धर्म के कार्यों में संतान की रूचि रहती है.
मीन लग्न: गुरु दशमेश व लग्नेश होकर पंचम भाव मे अपनी ऊंच राशि का होता हैं ऐसा गुरु जिस भी व्यक्ति की कुंडली में होता है उसे हर तरह के सुख दिलाता है. संतान अच्छी निकलती है,पद प्रतिष्ठा और उच्च शिक्षा प्राप्त करता है.


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