नई दिल्लीः पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्मष्टमी का त्यौहार धूम धाम के साथ मनाया गया. मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी के मुख्य आकर्षण माने जाने वाले श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भागवत भवन, ठा. केशवदेव मंदिर, गर्भगृह व योगमाया मंदिर आदि में श्री कृष्ण जन्मष्टमी और जन्माभिषेक काफी धूमधाम से मनाया गया. वहीं कोरोना के मौजूदा खतरे के बीच दिल्ली के इस्कॉन मंदिर में सावधानी के साथ पूजा-अर्चना की गई. मंदिर में डिजिटल पूजा की व्यवस्था की गई थी.


भगवान श्रीकृष्ण के जाने के बाद शुरू हुआ कलयुग


भारतीय शास्त्रों में चार युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग के बारे उल्लेख किया गया है. जिसमें बताया गया है कि द्वापर युग में कौराव और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ था. जिसके खत्म होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका वापस लौट गए थे. कुछ ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि श्रीकृष्ण द्वारिका में रहने के कुछ समय बाद वैकुंठ धाम चले गए थे.


पांडवों ने अभिमन्यु पुत्र परिक्षित को चुना उत्तराधिकारी 


ज्योतिषाचार्यों के अनुसार श्री कृष्ण के वैकुंठ जाते ही धरती पर कलियुग का आरंभ हुआ था. ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि श्री कृष्ण के जाने के बाद अर्जुन को कई लड़ाइयों में हार का सामना करना पड़ा था. जिसके कारण पांडवों ने अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परिक्षित को उत्तराधिकारी बना दिया. इसके बाद पांडव हिमाल यात्रा पर निकल गए थे. जहां पर सभी पांडवों और द्रौपदी का अंत हो गया था. एस यात्रा में एकमात्र युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंचे थे.


राजा परिक्षित ने कलियुग को युद्ध में हराया


कहा जाता है कि राजा परिक्षित ने धरती पर कलियुग के आगमन पर उसे युद्ध में हरा दिया था. जिसके बाद कलियुग ने धरती पर रहने के लिए राजा से विनती की थी. जिसपर राजा परिक्षित ने कलियुग को पांच स्थानों पर रहने की अनुमती दी थी. जिसमें जुआ, हिंसा, व्यभिचार, मदिरा और सोने को शामिल किया था. कहा जाता है कि जो भी मनुष्य इन सभी चीजों का त्याग कर देता है उस पर कलयुग कभी हावी नहीं हो पाता है.


श्रीमद् भागवत के पाठ से मिलते हैं सकारात्मक परिणाम


इसके साथ ही ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण को याद करने और श्रीमद् भागवत का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति हो सकता है. उनका मानना है कि कलयुग के दौर में दान-पुण्य करके भी कलयुग के प्रकोप को कम कर सकते हैं.