कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भगवान कृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है. हिंदू धर्म में कृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि उनके अवतार का एक प्रमुख कारण क्रूर राजा कंस से लोगों को निजात दिलाना था. उन्होंने न सिर्फ कंस के अत्याचार से लोगों को मुक्ति दिलाई बल्कि पांडव की जीत में भी अहम भूमिका निभाई.


भगवान कृष्ण के श्रद्धालु जन्म अष्टमी को पूरी श्रद्धा और उत्साह से मनाते हैं. त्योहार को मनाने का एक माध्यम 'दही हांडी' भी है. जन्म अष्टमी पर दही हांडी महाराष्ट्र और गुजरात में उत्सव का प्रतीक है. मिट्टी के बर्तन को दही, मक्खन के साथ ऊंचाई पर लटका दिया जाता है. फिर युवाओं का झुंड मानव चेन बनाकर हांडी को तोड़ता है. आम तौर पर हांडी जमीन से 30 फीट की ऊंचाई पर लटकाई जाती है. त्योहार के मौके पर भगवान कृष्ण की प्रशंसा में एक स्पेशल झांकी और डांस का आयोजन भी किया जाता है. मगर इस बार कोविड-19 की महामारी के चलते उत्सव धूमधाम से नहीं मनाया जाएगा.


'दही हांडी' के आयोजन के पीछे मान्यता


वृंदावन में भगवान कृष्ण को मक्खन, दही, दूध बहुत ज्यादा पसंद था. बचपन में पड़ोसियों के घरों से मक्खन चुराया करते थे. इसके चलते उनका नाम 'माखन चोर' भी पड़ गया. मां यशोदा उनकी आदतों से तंग आ चुकी थीं. चोरी से रोकने के लिए यशोदा उन्हें बांध देती थीं. साथ ही महिलाओं को अपने मक्खन, दूथ और दही हांडी में ऊंचाई पर बांधने की ताकीद करती थीं. ऐसा कृष्ण की पहुंच से दूर बनाने के लिए महिलाओं को मां यशोदा सलाह देती थीं. मगर कृष्ण कहां रुकने वाले थे .अपने दोस्तों के साथ मानव चेन बनाकर हांडी तक पहुंच जाते और हांडी तोड़कर आपस में बांट लेते.


युवाओं का समूह 'दही हांडी' तोड़ने का कार्यक्रम मीठी याद के तौर पर मनाता है. दही हांडी के उत्सव को मनाने के लिए समर्पित टीम होती है. त्योहार से पहले हफ्तों उन्हें अभ्यास करना पड़ता है. एक मानव चेन में नौ लेयर हो सकता है. मानव चेन बनानेवाले को 'गोविंदा' कहा जाता है. हर साल कई टीम इस उत्सव में शामिल होती है. उसके बाद विजेता टीम को पुरुस्कृत किया जाता है.


छप्पन भोग की परंपरा की कहानी


छप्पन भोग खास प्रसाद होता है जो 56 सामग्री के मिश्रण से बनाया जाता है. गोवर्धन पूजा पर ये भोग भगवान कृष्ण को समर्पित किया जाता है. छप्पन भोग के पीछे वृंदावन के किसानों की कहानी है. किसान भगवान इंद्र को खुश करने के लिए शानदार खाने की पेशकश करते थे. नटखट बालक ने इस परंपरा को किसानों के लिए अनुचित पाया. उन्होंने किसानों को मना किया. किसानों ने जब खाना देना बंद कर दिया तो इससे भगवान इंद्र नाराज हो गए. उनके आदेश पर बारिश कई दिनों तक होती रही. जिसकी वजह से वृंदावन में बाढ़ आ गई.


लोगों को डूबने से बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने अपनी नन्ही अंगुली के इशारे से गोवर्धन पर्वत की शरण में पहुंचाया. भगवान कृष्ण 7 दिनों तक पर्वत को उठाए खड़े रहे. जब भगवान इंद्र को लगा कि लोग मुसीबत में हैं तब उन्होंने बारिश को रुकने का हुक्म दिया. इस दौरान कृष्ण भगवान ने अन्य का एक भी दाना नहीं खाया. सातवें दिन के समापन पर वृंदावन के लोगों ने 56 सामग्री मिलाकर डिश तैयार की और आभार के तौर पर उन्हें पेश किया.


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