Mahabharat In Hindi: भाद्रपद मास भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. भाद्रपद मास में ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस दिन व्रत रखकर कृष्ण भक्त भगवान की पूजा अर्चना करते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मथुर में भक्तिभाव और हर्षोल्लास से मनाया जाता है. क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में ही हुआ था. मथुरा में उन्होने कई बाल लीलाएं की.
बलराम की बातों पर जब कान्हा हुए नाराज
भगवान श्रीकृष्ण का रंग सांवला था. श्रीकृष्ण जब छोटे थे तो बलराम जिन्हे बल दाऊ भी कहा जाता है. अक्सर चिढ़ाते रहते थे. एक दिन कृष्ण खेलने के लिए नहीं, उनके सभी मित्र युमना किनारे खेलने के लिए पहुंच गए. मैया यशोदा ने देखा कि कृष्ण एक कोने में उदास बैठे हुए हैं, तो उन्होंने कृष्ण से पूछा कि कान्हा तुम आज खेलने के लिए क्यों नही, तुम्हारे सभी सखा-मित्र तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे.
बल दाऊ सांवला कह कर चिढ़ाते हैं
इस पर भगवान श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं मैया अब में मैं खेलने नहीं जाउंगा. इस पर माता यशोदा पूछती कि क्यों खेलने नहीं जाओगे. तब कृष्ण कहते हैं कि बलराम दाऊ मुझे बहुत चिढ़ाते हैं. वो मुझसे कहते हैं मुझे खरीदकर लाया गया है. तुम मेरी माता नहीं हो. अब ऐसे में कैसे खेलने जाऊं. मैं उनकी इस बात से बहुत नाराज हूं इसीलिए खेलने नहीं जा रहा हूं. मेरे मित्रों के सामने बल दाऊ पूछने लगते हैं कि तेरी माता कौन है? तेरे पिता कौन हैं? नन्दबाबा तो गोरे हैं, यशोदा मैया भी गोरी हैं, तू सांवले कैसे हो गया.
बलराम की यशोदा से की शिकायत
भोलेपन से श्रीकृष्ण कहते है मैया इतना ही नहीं अब तो ग्वाल-बाल भी मुझे छेड़ने लगे हैं, वे मुझे बहला-फुसला कर नचाते हैं और फिर सब हंसते हैं. इतना कहने के बाद भगवान कृष्ण और क्रोध में आ जाते हैं और ताना देकर अपनी माता से कहते हैं मैया तून सिर्फ मुझे ही मारना सीखा है. बल दाऊ से कभी कुछ नहीं कहती.
मैया यशोदा को खानी पड़ी शपथ
कान्हा की बातों को सुनकर माता यशोदा मन ही मन खुश होती हैं. उन्हें कान्हा की बातों में आनंद आने लगता है और कान्हा को खुश करने के लिए कहती हैं कि तुम क्यों परेशान होते हैं. बलराम तो चुगलखोर हैं. तुम क्यों उनकी बातों में आते हो. मैं ही तुम्हारी मैया हूं, मैं गौमाता की शपथ लेकर कहती हूं कि तुम मेरे ही पुत्र हो. तब कहीं जाकर श्रीकृष्ण मानते हैं. इस पूरे प्रसंग का सूरदास जी ने कुछ इस तरह से व्यक्त किया है-
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ।
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हों, तू जसुमति कब जायो।
कहा करौं इहि रिस के मारैं, खेलन हौं नहिं जात।
पुनि पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।
गोरे नंद जसोदा गोरी, तू कत स्यामल गात।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत, हँसत सबै मुसुकात।
तू मोहीं कौ मारन सीखी, दाउहिं कबहुँ न खीझै।
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि सुनि रीझै।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत।
सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं, हौं माता तू पूत।।