Janmashtami 2022: श्रीकृष्ण ऐसे ही नहीं थे सोलह कलाओं के स्वामी, कुंडली में मौजूद था ये योग, जानें जन्म की कथा
Janmashtami 2022: भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय उनकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति अत्यंत शुभ थी. जिस कारण वे सभी कलाओ में निपुण माने गए हैं.
Janmashtami 2022: जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. भगवान श्रीकृष्ण का इस दिन जन्म हुआ था. जन्म के समय उनकी कुंडली में मौजूद ग्रहों ने उन्हें सोलह कलाओं का स्वामी बनाया था.
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म (Krishna Janmashtami)
भागवत पुराण में इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन किया गया है-
श्रीशुक उवाच
अथ सर्वगुणोपेत: काल: परमशोभन: ।
यर्ह्येवाजनजन्मक्षन शान्तर्क्षग्रहतारकम् ॥ 1 ॥
दिश: प्रसेदुर्गगनं निर्मलोडुगणोदयम् ।
मही मङ्गलभूयिष्ठपुरग्रामव्रजाकरा ॥ 2 ॥
नद्य: प्रसन्नसलिला ह्रदा जलरुहश्रिय: ।
द्विजालिकुलसन्नादस्तवका वनराजय: ॥ 3 ॥
अर्थ- शुकदेव जी कहते हैं कि जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उस समय प्रतीत हुआ कि शुभ गुणों से युक्त सुहावना समय आ गया है. रोहिणी नक्षत्र था. आकाश के सभी नक्षत्र, ग्रह और तारे शांत- सौम्य हो गए. दिशाएं स्वच्छ, प्रसन्न थी. निर्मल आकाश में तारे जगमगा रहे थे. पृथ्वी के बड़े बड़े नगर, छोटे-छोटे गांव आदि हीरे आदि की खानें मंगलमय हो रही थीं. नदियों का जल निर्मल हो गया था. रात में भी सरोवरों में कमल खिल रहे थे. जंगलों में पत्तियां रंग बिरंगे फूलों से लद गई थीं. कहीं पक्षी चहक रहे थे, तो कहीं भौंरे गुनगुना रहे थे.
भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली (Shri Krishna Kundli)
माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था, उस समय रात्रि के 12 बज रहे थे. भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली वृषभ लग्न की है, लग्न में उच्च का चंद्रमा था. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को 16 कलाओं का स्वामी माना गया है. चंद्रमा की उच्च स्थिति के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं के माहिर थे.
16 कलाओं के नाम (16 Kala of Krishna)
- श्रीधन संपदा- प्रथम कला के रूप में धन संपदा है.
- भू-अचल संपत्ति- भू- अचल संपत्ति को स्थान दिया गया है.
- कीर्ति-यश प्रसिद्धि- तीसरी कला के रूप में कीर्ति-यश प्रसिद्धि.
- इला-वाणी की सम्मोहकता- चौथी कला इला-वाणी की सम्मोहकता है.
- लीला- आनंद उत्सव पांचवीं कला का नाम है लीला, यह आनंद भी है.
- कांति- सौदर्य और आभा: जो मुखमंडल बार-बार निहारने का मन करता है. वह छठी कला से संपन्न माना जाता है.
- विद्या- मेधा बुद्धि: सातवीं कला का नाम विद्या है. इससे परिपूर्ण व्यक्ति सफलता में आगे रहता है.
- विमला- पारदर्शिता: जिसके मन में छल-कपट नहीं हो, वह आठवीं कला युक्त माना जाता है.
- नौवीं कला- के रूप में प्रेरणा को स्थान दिया गया है.
- ज्ञान- नीर क्षीर विवेक: श्रीकृष्ण ने कई बार विवेक का परिचय देकर समाज को नई दिशा दी.
- क्रिया- कर्मण्यता- ग्यारहवीं कला के रूप में क्रिया रखी गई है.
- योग- चित्तलय: बारहवीं कला के रूप में योग को रखा गया है.
- प्रहवि- अत्यंतिक विनय: तेरहवीं कला का नाम प्रहवि है.
- सत्य- यर्थार्थ: श्री कृष्णजी की चौदहवीं कला सत्य है.
- इसना- आधिपत्य: नंदलाल की पंद्रहवीं कला का नाम इसना है.
- अनुग्रह- सोलवीं कला के रूप मे श्रीकृष्णजी को अनुग्रह मिला है.
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