जन्माष्टमी विशेष: बड़े बड़े राक्षसों को मारने वाले कृष्ण ने क्यों छोड़ा था मैदान, जानें उनके 'रणछोड़' नाम पड़ने की कहानी
24 अगस्त को देश भर में कृष्ण जन्मअष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा. इस खास मौके पर हम आपको कृष्ण के रणछोड़ नाम पड़ने की कहानी बताते हैं. जानें आखिर क्यों कृष्ण को मैदान छोड़कर भागना पड़ा था.
नई दिल्ली: कल देश भर में कृष्ण जन्मअष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा. इसे लेकर भक्त जोर-शोर से तैयारियां कर रहे हैं. लेकिन वृन्दावन के प्रसिद्ध ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में जन्माष्टमी का त्यौहार 23 अगस्त यानि आज मनाया जा रहा है. इस खास मौके पर हम आपको श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी एक ऐसी घटना के बारे में बताते हैं जिसके बाद उनका नाम रणछोड़ (मैदान को छोड़ देना वाला) पड़ा.
कृष्ण की छवि आम जनमानस में एक ऐसे दैविय पुरुष की रही है जो विकट से विकट परिस्थिती में भी घबराते नहीं हैं, जिनके पास हर संकट से निकलने के लिए कोई न कोई युक्ति जरूर होती है. लेकिन एक बार उन्हें युद्ध के मैदान से भागना पड़ा था, जिसके कारण उन्हें रणछोड़ कहा जाने लगा. कृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे. उसी वक्त वहां पर जरासंध का मित्र कालयवन आ गया. कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे इसलिए कृष्ण ने उसका वध नहीं किया.
उस वक्त कृष्ण वहां से भाग निकले, कन्हैया का भागता देख कालयवन भी उनके पीछे दौड़ने लगा. तब कान्हा दौड़ते हुए एक गुफा में जाकर छुप गए, उस गुफा में मुचुकुंद नाम के राजा सो रहे थे. मुचुकुंद को ये वरदान था कि जो भी उन्हें नींद से जाएगा उसपर उनकी नजर पढ़ते ही वो वहीं भस्म हो जाएगा. कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझ कर उनकी निंद्रा भंग कर दी. जिसके बाद मुचुकुंद की नजर पढ़ते ही वो वहीं पर भस्म हो गया.
श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है. उनका पूरा जीवन लीलाओं से संदेशों से भरा है. अपनी हर लीला में वो समाज को कोई न कोई संदेश जरूर देते हैं. उसी तरह यहां भी उन्होंने संदेश दिया है कि युद्ध सिर्फ शक्ति नहीं बल्कि युक्ति से भी जीते जाते हैं और कभी-कभी मैदान जीतने के लिए मैदान छोड़ना भी पढ़ता है.
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