क्या है ईद मिलादुन्नबी, मुसलमान इसे क्यों मनाते हैं, क्या है तरीका?
जश्न ईद-ए-मिलादुन्नबी मनाने का तरीका, क्यों है मुसलमानों के नजदीक ईद-ए-मिलादुन्नबी खास, क्या है आखिरी नबी का संदेश
नई दिल्ली: इस्लाम के आखिरी पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब के जन्मदिन के मौके पर मनाये जानेवाले जश्न को ईद मिलादुन्नबी कहते हैं. इस दौरान मुसलमान बड़ी अकीदत से कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. कहीं मुहम्मद साहब की जीवनी पर जलसे का आयोजन किया जाता है जिसमें उनकी जिंदगी पर रोशनी डाली जाती है, तो कहीं जुलूस का आयोजन किया जाता है. जिसमें हर उम्र के मुसलमान खासकर नौजवान झंडे, बैनर और प्लेकार्ड के साथ मुहम्मद साहब के संदेश को आम करते हैं.
इन जलसे जुलूस के दौरान मुहम्मद साहब की शान में नातगोई (तारीफ में कही जाने वाली कविता) होती है तो कहीं मुहम्मद साहब की जीवनी से संबंधित क्विज प्रतियोगिता का आयोजन होता है. कोई कुरआन शरीफ पढ़कर अपने आप को हजरत मुहम्मद साहब का सच्चा पैरोकार बनने की कोशिश करता है.
आज है जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी ईद मिलादुन्नबी के कार्यक्रमों में हजारों मुसलमान शिरकत करते हैं. इस दिन अपने कारोबार को बंद रख अपनी अकीदत का इजहार करते हैं. मुस्लिमों के मुताबिक, हजरत मुहम्मद साहब का पूरा जीवन अनुकरणीय है. उनके बाद कोई नबी या पैगम्बर (अवतार या दूत) नहीं आनेवाला है. अल्लाह ने उनको सबसे आखिर में अपना दूत बनाकर भेजा. मुहम्मद साहब ने अल्लाह का पैगाम दुनिया वालों तक पहुंचा दिया. इसलिए मुहम्मद साहब का पैगाम न सिर्फ मुसलमानों के लिए है बल्कि रहती दुनिया तक अन्य लोगों के लिए भी है.
क्या है आखिरी पैगम्बर के संदेश जिस वक्त मुहम्मद साहब की मक्का में पैदाइश हुई, उस वक्त के दौर को ‘जाहिली दौर’ यानी अंधकार युग कहा जाता है. 40 साल की आयु में मुहम्मद साहब को अल्लाह ने अपना दूत बनाया. हजरत मुहम्मद साहब 23 साल तक लोगों को अल्लाह का पैगाम सुनाते रहे. जिसमें एक अल्लाह की इबादत, उसके साथ किसी को शरीक नहीं करना, उनको अल्लाह का आखिरी रसूल मानना है. कहा जाता है कि उन पर ईमान लाने वाले साथियों ने दुनिया से अंधकार युग का खात्मा किया. क्योंकि कुरआन में है, पढ़ो अपने रब के नाम से.
कोई छोटा, कोई बड़ा नहीं, काले-गोरे सब बराबर हैं बतौर अल्लाह के दूत (अवतार) अपने 23 साल की जिंदगी में पैगंबर-ए-इस्लाम ने दुनिया को 1450 साल पहले ये संदेश दिया के अल्लाह (ईश्वर) के सामने कोई बड़ा, कोई छोटा नहीं है. उनका साफ और सीधा संदेश था कि न गोरे काले से बेहतर हैं, न काले गोरे से बेहतर हैं, बल्कि सब बराबर हैं. अल्लाह के नजदीक एक इंसान दूसरे इंसान से नस्ल या क्षेत्र की बुनियाद पर बड़ा या छोटा नहीं है.
औरतों को संपत्ति में हक दिया
मुहम्मद साहेब के दौर में बच्चियों को ज़िंदा दफ्ना दिया जाता था, उस दौर में उन्होंने इसपर न सिर्फ रोक लगाई बल्कि औरतों को बराबरी का हक दिया. माता-पिता की संपत्ति में हिस्सेदार बनाया.
बेगुनाह इंसान के कत्ल को पूरी इंसानियत का कत्ल मुहम्मद साहब ने जमीन पर किसी भी तरह की हिंसा को नाजायज़ करार दिया. उनका संदेश थाकि धरती पर किसी बेगुनाह का कत्ल पूरी इंसानियत (मानवता) का कत्ल है.