Jaya Ekadashi 2023 Katha: माघ महीने के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का व्रत श्रीहरि भगवान विष्णु को समर्पित. एकादशी का जन्म श्रीहरि के शरीर से ही हुआ है. यही वजह है कि सभी व्रतों में इसे बहुत महत्व पूर्ण माना जाता है. इस साल जया एकादशी का व्रत 1 फरवरी 2023 को रखा जाएगा.
पौराणिक मान्यता के अनुसार जया एकादशी व्रत के प्रभाव से साधक कभी पिशाच और प्रेत योनी में जन्म नहीं लेता. जया एकादशी व्रत के दिन पूजा के बाद कथा का जरूर श्रवण करें. इससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है. आइए जानते हैं जया एकादशी व्रत की कथा.
जया एकादशी 2023 मुहूर्त (Jaya Ekadashi 2023 Muhurat)
माघ शुक्ल जया एकादशी तिथि शुरू - 31 जनवरी 2023, सुबह 11:53
माघ शुक्ल जया एकादशी तिथि समाप्त - 1 फरवरी 2023, दोपहर 02:01
जया एकादशी व्रत पारण समय - सुबह 07.12 - सुबह 09.24 (2 फरवरी 2023)
जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार श्रीकृष्ण जया एकादशी व्रत का महाम्त्य जाना. श्रीकृष्ण ने कथा कहते हुए बताया कि एक बार नंदन वन में इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. इस सभा में देवतागण और ऋषि प्रफूल्लित होकर उत्सव का आनंद ले रहे थे. उत्सव में गंधर्व गाने रहे थे और अप्सराएं नृत्य कर रही थी. इन्हीं में से एक गंधर्व था माल्यवान. वहीं एक सुंदर नृत्यांगना थी जिसका नाम था पुष्यवती. उत्सव के दौरान पुष्यवती और माल्यवान एक दूसरे पर मोहित हो गए और सभी की उपस्थिति में वे अपनी मार्यादाएं भूल गए.
इंद्र ने दिया पिशाच योनि में जन्म लेने का श्राप
पुष्यवती और माल्यवान के इस कृत्य से देवतागण और ऋषि असहज हो गए. इसके बाद देवराज इंद्र भयंकर क्रोधित हो उठे. इंद्र ने दोनों को श्राप दे दिया कि वह स्वर्गलोक से निष्कासित करके मृत्यु लोक (पृथ्वी) पर पिशाच योनि में निवास करने का श्राप दे दिया.
श्राप के प्रभाव से पुष्यवती और माल्यवान पिशाच योनि में दुख भोगने लगे. प्रेत योनि में दोनों का जीवन बहुत कष्टदायक रहा.
जया एकादशी के प्रभाव से मिली प्रेत योनि से मुक्ति
माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का दिन आया. इस दिन दोनों को सिर्फ फलाहार ही खाने को मिला. दोनों रात्रि में ठंड की वजह से सो नहीं पाए. इस तरह अनजाने में एकादशी का रात्रि जागरण भी हो गया. उस दिन वह अपने किए पर पश्चातावा करते हुए भगवान विष्णु से इस कष्टदायक जीवन से मुक्त करने की प्रार्थना की.
अनजाने में ही दोनों ने जया एकादशी का व्रत पूर्ण कर लिया लेकिन सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. इस व्रत के प्रभाव से दोनों को पिशाच योगि से मुक्ति मिल गई और वह दोबारा स्वर्ग लोक चले गए. तभी से जया एकादशी का व्रत किया जाने लगा.
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