Jaya Parvati Vrat Katha, Puja Vidhi: जया पार्वती व्रत (Jaya Parvati Vrat 2022) आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है. इस साल 2022 में यह व्रत 12 जुलाई दिन मंगलवार को मनाया जाएगा. जया पार्वती का व्रत (Jaya Parvati Vrat 2022) 5 दिनों की कठिन पूजा विधि (Jaya Parvati Vrat Puja Vidhi) के साथ संपन्न किया जाता है. इस दिन अविवाहित कन्याएं और विवाहित महिलाएं बालू या रेत का हाथी बनाकर उस पर 5 दिन तक 5 तरह के फल, फूल और प्रसाद चढाती हैं. माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ की पूजा करती हैं. सुहागिन स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं. कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर पाने की चाहत से यह व्रत करती हैं.


जया पार्वती पूजा विधि  (Jaya Parvati Vrat 2022 Puja Vidhi)


आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्त्रियां सबसे पहले स्नान करती हैं और पूजा स्थान को साफ करती हैं. भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करके उस पर कुमकुम, रोली, चंदन, फूल चढ़ाकर पूजा करती हैं. नारियल, अनार तथा अन्य सामग्री चढ़ाकर विधि विधान से पूजा करें. ऊं नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए माता पार्वती और भगवान शिव का ध्यान करें. जया पार्वती व्रत (Jaya Parvati Vrat 2022) का समापन करते समय सर्वप्रथम किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं तथा वस्त्र और यथासंभव धन दान दें. इस दिन जया पार्वती के व्रत की कथा (Jaya Parvati Vrat Katha) सुननी चाहिए.


जया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा (Jaya Parvati Vrat Katha)


पौराणिक कथा के अनुसार एक समय कौंडिल्य नगर में एक बामन नाम का योग्य ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी का नाम सत्य था. दोनों अपने जीवन में बहुत खुश थे परंतु उनके कोई संतान नहीं थी. एक दिन देव ऋषि नारद ब्राम्हण परिवार से मिलने आए. ब्राम्हण परिवार ने देव ऋषि नारद की यथासंभव खूब सेवा की. लेकिन उनकी सेवा में चिंता का भाव देखकर नारद ने कहा आप कुछ चिंतित दिखाई दे रहे हैं. तभी ब्राम्हण की पत्नी सत्य ने कहा कि क्या मेरी गोद ऐसे ही सुनी रहेगी. मुझे कभी पुत्र नहीं होगा.


नारद ने कुछ विचार किया कहा तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है उस के दक्षिणी भाग में एक वृक्ष के नीचे भगवान शिव पार्वती के साथ लिंग स्वरूप में विराजमान हैं. आपको विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए. आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी.


ब्राम्हण और उनकी पत्नी ने विधि विधान से पूजा की. इस पूजा को 5 वर्ष बीत चुके थे. परंतु ब्राम्हण परिवार को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई. लेकिन उन्हें नारद के वचनों पर पूर्ण विश्वास था. इसलिए वह पूजा करते रहे. एक दिन ब्राम्हण जंगल में फूल लेने गया तो उसे सांप ने काट लिया. काफी देर तक जब वह वापस नहीं लौटा तो ब्राह्मणी ने उसकी खोज शुरू की. कुछ दूर जाकर जब ब्राम्हण को मृत देखा तो वहीं विलाप करने लगी. माता पार्वती की आराधना करने लगी. इससे माता पार्वती प्रसन्न हुई और उसके पति को जीवनदान दिया. कुछ समय पश्चात उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह ब्राह्मण परिवार सुख पूर्वक रहने लगा.



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