Jhulelal Jayanti 2024: 9 अप्रैल 2024 को सिंधि समुदाय का पर्व चेटी चंड मनाया जाएगा. इस दिन से सिंधी लोगों का नववर्ष शुरू होता है. इसी दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था. भगवान झूलेलाल को वरुण देव भी माना जाता है इससलिए सिंधी लोग इस दिन जल की भी पूजा करते हैं.


चेती माह (चैत्र माह) के दौरान चंद्रमा के पहली बार दिखाई देने के कारण इस पर्व को चेटी चंड कहा जाता है. भगवान झूलेलाल कौन हैं, आखिर चेटी चंड के दिन क्यों की जाती है इनकी पूजा. जानें ये रोचक कथा.


झूलेलाल जयंती की कथा (Jhulelal Story)


पौराणिक कथा के अनुसार संवत् 1007 में पाकिस्तान में सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक क्रूर मुगल राजा का राज था. शासक मिरक अपनी प्रजा पर बर्बरता करता, उन पर अत्याचार करता था. उसने हिंदू आदि धर्म के लोगों को डरा-धमकाकर इस्लाम स्वीकार करवाया.


कौन हैं भगवान झूलेलाल (Jhulelal Bhagwan)


उसके अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए सभी ने सिंधू नदी के किनारे लोगों ने पूजा पाठ, जप, व्रत आदि किए थे.  कई दिनों तक पूजन चलता था. भक्तों की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर मछली पर भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और उन्होंने भक्तों से कहा कि वह 40 दिन बाद सिंधी समाज में जन्म लेंगे.


इसके ठीक 40 दिन बाद चैत्र सुदी दूज पर उनके बताए स्थान पर एक चमत्कारी बालक ने श्रीरतनराय लोहाना के घर जन्म लिया, यही भगवान झूलेलाल कहे गए.


भगवान झूलेलाल ने दिखाया चमत्कार 


सिंधी लोककथाओं के अनुसार जब इसके बारे में मिरखशाह को पता चला तब उसने अपने एक मंत्री को झूलेलाल को देखने के लिए भेजा. झूलेलाल ने उसे कुछ ऐसा अहसास करवाया जैसे वो 16 साल के युवक की तरह हाथ में तलवार लिए आगे बढ़ रहा है.


उस बच्चे को ऐसा देखकर मंत्री डर गया और मिरखशाह के पास गया. दिन ब दिन झूलेलाल के चमत्कारों की ख्याति बढ़ती गई.


 भगवान झूलेलाल ने मिरखशाह को चटाई धूल


मिरखशाह ने झूलेलाल को गिरफ्तार करना चाहा लेकिन अचानक पूरे महल के चारों तरफ पानी भर गया और बीच में आग लग गई. भगवान झूलेलाल ने मिरखशाह को हिंदूओं पर अत्याचार न करने की चेतावनी दी.


मिरखशाह डर गया और उसने वादा किया कि हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही एक तरह से देखेगा.


भगवान झूलेलाल को मामते हैं जल देवता


वहीं एक मान्यता है कि प्राचीन काल में जब सिंधी समाज के लोग व्यापार से संबंधित जलमार्ग से यात्रा करते थे. तब यात्रा को को सकुशल बनाने के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे और यात्रा सफल होने पर भगवान झूलेलाल का आभार व्यक्त किया जाता था. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए चेटीचंड का त्योहार माना जाता है.


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