Jitiya Vrat Katha 2021: हिंदू पंचाग (Hindu Calander) के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) का बहुत महत्व है. इसे जिउतिया, जितिया (Jitiya), जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन, जीतिया व्रत भी कहा जाता है. जितिया व्रत छठ व्रत (Chhath Vrat) की तरह ही होता है. जितिया व्रत 28 सितंबर को  सूर्यास्त के बाद से शुरू होकर 30 सितंबर सूर्योदय के बाद खोला जाता है. जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. इतना ही नहीं, संतान प्राप्ति, उनके स्वास्थ्य आदि के लिए भी ये व्रत रखा जाता है. जितिया व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर दशमी को व्रत खोला जाता है. प्रथम दिन यानि अष्मटी के दिन नहाए खाए होता है और फिर 29 सितंबर को निर्जला व्रत रखा जाता है.  


ये व्रत मुख्यरूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में रखा जाता है. जितिया व्रत के दौरान व्रत रखा जाता है, कथा सुनी जाती है. इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी, आइए जानते हैं जितिया व्रत से जुड़ी ये कथा...


जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)


जितिया व्रत के दिन इनकी कथा सुननी जरूरी होती है. जीमूतवाहन युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में चले गए थे. वहां  पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन जंगल में घूमते समय उन्हें नागमाता मिली. जीमूतवाहन के नागमाता से विलाप का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है. अपने वंश की रक्षा करने के लिए उन्होंने गरुड़ से समझौता किया है कि वे रोज गरुड़ को एक नाग खाने को देंगे. ऐसा करने पर वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा.


इस समझौते के बाद आज नाग के पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है. जीमूतवाहन ने नागमाता की ये सारी बातें सुनकर उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उनकी रक्षा करके उन्हें वापस लौटा देंगे. जीमूतवाहन खुद को नाग के पुत्र की जगह कपड़े में लिपटकर गरुड़ के सामने उस शिला पर जाकर लेट गए, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है. गरुड़ आया और शिला पर से अपने जीमूतवाहन को पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ ले गया. गरुड़ ने देखा कि हर बार कि तरह इस बार नाग न चिल्ला रहा है और न ही रो रहा है. इस बार नाग बिल्कुल शांत है. उसने एकदम से कपड़ा हटाया, तो जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बताई, जिसके बाद गरुड़ ने उन्हें छोड़ दिया. इतना ही नहीं, नागों को न खाने का भी वचन दिया. 


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