Jyeshtha Month 2023: ज्येष्ठ माह में कैसी होनी चाहिए लाइफस्टाइल? नहीं जानते तो जान लें, वरना होगी परेशानी
Jyeshtha Month 2023: ज्येष्ठ के महीने में सूर्य अपनी किरणों द्वारा प्रकृति की शीतलता को सोख लेता है और इस कारण इस महीने में बहुत गर्मी पड़ती है. शास्त्रों में इस महीने कई कार्य वर्जित माने गए हैं.
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Jyeshtha Month 2023: भारतीय परंपरा में ऋतुचर्या यानी ऋतु के अनुसार आहार ग्रहण करने की परंपरा रही है. यह नियम हमें विरासत से मिली है. ऋतु के अनुसार आहार के विषय में तो हमारे ऋषि-मुनियों ने भी अध्ययन कर बहुत चिंतन-मनन किया है.
चैते गुड़ बैसाखे तेल जेठे मिर्च, आषाढ़ बेल।
सावन साग भादो मही क्वांर करेला कार्तिक दही।।
अगहन जीरा पूस धना माघै मिश्री फाल्गुन चना।
जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।।
जन कवि घाघ कहते हैं कि, चैत में गुड़, वैशाख में तेल, जेठ में मिर्च, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादो में दही, क्वार में दूध, कार्तिक में दही, अगहन में जीरा, पूस में धनियां, माघ में मिश्री और फागुन में चने के सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.
मई-जून के महीने में बहुत तेज गर्मी पड़ती है. यह ज्येष्ठ का महीना होता है. इस साल 6 मई 2023 से ज्येष्ठ महीने की शुरुआत हो चुकी है, जिसका समापन 4 जून 2023 को होगा. भारत में एक वर्ष में कुल 6 ऋतुएं होती हैं. इसमें ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत ऋतु शामिल है. वैशाख और ज्येष्ठ महीने को ग्रीष्म ऋतु कहा जाता है. यह गर्म ताप, लू और तपन के लिए जाना जाता है.
क्यों जरूरी है ऋतुचर्या अनुसार आहार
ऋतु के अनुसार क्या खाना सही है इसे जानने से पहले शरीर विज्ञान के विषय को भी जानने की जरूरत है. विज्ञान के अनुसार हमारा शरीर पांच महाभूतों जल, वायु, अग्नि, आकाश व भूमि से बना हुआ है और भूमि से उत्पन्न खाद्य पदार्थ भूमि तत्व होते हैं. इसके साथ ही शरीर में सात धातुएं रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य भी हैं. इन पंच महाभूत और सात धातु की 12 अग्नियां है, जिसमें एक अग्नि का सीधा संबंध भोजन को पाचाने से होता है, जिसे जठराग्नि कहा जाता है. जठराग्रि में 13 तरह की अग्नियां होती हैं. अलग-अलग ऋतुओं में ये अग्नियां विशेषरूप से कम या अधिक जठराग्नि भी प्रज्ज्वलित होती है.
शास्त्रों के अनुसार ऋतुचर्या भोजन का विधान
हमारे शास्त्रों में भी ऋतुओं के अनुसार भोजन करने के महत्व के बारे में बताया गया है. महर्षि वाग्भट्ट अपनी पुस्तक अष्टांग हृदयम् में लिखते हैं- ‘भोजनान्ते विषम् वारी’. यानी कि भोजन के बाद जल पीना विष के समान है. ऐसा करने से जठराग्रि प्रज्वल्लित होती है और भोजन अपच हो जाता है. इसे ही आयुर्वेद में अर्जीण कहा जाता है. बात करें गीष्म ऋतु की तो, इस महीने गरिष्ठ भोजन यानी अत्यधिक तेल, मसाले वाले भोजन से बचना चाहिए. ग्रीष्म ऋतु यानी ज्येष्ठ-आषाढ़ के महीने में लोगों को मधुर रस, मिट्टी के घड़े का शीतल जल, नारियल, रात में उबला हुआ दूध, सत्तू, बेल आदि का सेवन करना चाहिए.
ज्येष्ठ महीने का महत्व
ज्येष्ठ महीने के स्वामी मंगल ग्रह है, जिसे ज्योतिष में साहस का प्रतीक माना गया है. यह महीना भगवान विष्णु और बजरंगबली का प्रिय मास है. ज्येष्ठ के महीने में सूर्य का ताप असहनीय गर्म और तेज हो जाता है. लेकिन यह महीना हमें प्रंचड गर्मी सहने की प्रेरणा भी देता है. ज्येष्ठ माह समाप्त होने के बाद शीतल वर्षा का आगमन होता है. इस महीने कई खूबसूरत फूल खिलते हैं, आम, लीची, बेल आदि जैसे फल लगते हैं और चारों ओर कोयलों की मधुर बोली सुनने को मिलती है. इसलिए ज्येष्ठ माह का ग्रीष्मकाल भी कई मायनों में आनंदमय होता है.
ज्येष्ठ महीने में इन कामों से करें परहेज
- ज्येष्ठ के महीने में दिन में कभी न सोएं. इससे आप कई रोगों से ग्रसित हो सकते हैं.
- ज्येष्ठ महीने अत्यधिक तेल-मसालेदार भोजन का सेवन नहीं करें.
- कोशिश करें कि इस महीने दिन में केवल एक बार ही भोजन करें.
- लहसुन, राई और गर्म तासीर वाली चीजों के सेवन से बचें.
- ज्येष्ठ महीने में बैंगन का सेवन करने से कई दोष लगते हैं और इसे संतान के लिए भी शुभ नहीं होता है.
- परिवार के बड़े पुत्र या बड़ी पुत्री का विवाह भी ज्येष्ठ के महीने में नहीं करना चाहिए.
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