Jyotirlinga: जानें भगवान शिव के 12 वें ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर की महिमा
Jyotirlinga Temples Of India: सावन मास भगवान शिव को समर्पित है. शिव की पूजा में ज्योतिर्लिंग की पूजा श्रेष्ट फलदायी मानी गई है. घृष्णेश्वर मंदिर भगवान शिव का 12 वां ज्योतिर्लिंग है. आइए जानते है इस ज्योतिर्लिंग के बारे में.
Grishneshwar Jyotirlinga Temple: घृष्णेश्वर मंदिर भगवान शिव का सिद्ध स्थान माना जाता है. भगवान शिव का 12 वां ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान को घुश्मेश्वर भी कहा जाता है. घृष्णेश्वर मंदिर मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था. भगवान शिव का यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है. सावन के महीने में यहा पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है. शिव भक्तों की इस ज्योतिर्लिंग को लेकर अट्टू आस्था है. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवमहापुराण में भी आता है.
पौराणिक कथा घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि यहां आने वाले की हर व्यक्ति की भगवान शिव मनोकामना पूर्ण करते हैं. एक कथा के अनुसार देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करते थे. ये दोनों दंपति एक दूसरों को बहुत प्रेम करते थे. सुधर्मा एक तेजस्वी ब्राह्मण थे. इन दोनों का जीवन आराम से गुजर रहा था. लेकिन इन लोगों को एक कष्ट था कि इनकी कोई संतान नहीं थी. सुधर्मा ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे. उन्होंने पत्नी की जन्म कुंडली में बैठे ग्रहों का जब अध्ययन किया तो पाया कि सुदेहा संतानोत्पत्ति नहीं कर सकती है. जबकि सुदेहा की संतान की प्रबल इच्छा थी. लेकिन इस बात को जानकर उसे बहुत दुख हुआ. एक दिन सुदेहा ने सुधर्मा से अपनी छोटी बहन घुष्मा से दूसरा विवाह करने की बात कही. पहले तो इस सुधर्मा ने सुझाव को नकार दिया लेकिन जब पत्नी ने दवाब बनाया तो झुकना पड़ा. कुछ दिन बाद सुधर्मा पत्नी की छोटी बहन से विवाह कर घर ले आए.
घुष्मा शिव की परम भक्त थी. कुछ दिनों बाद उसने सुंदर बालक को जन्म दिया. पुत्र होने पर दोनों प्रसन्न रहने लगे. लेकिन सुदेहा के मन में नकारात्मक विचार पनपने लगे. इसी के चलते उसने एक दिन घुष्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला और शव को तालाब में फेंक दिया. इसी तलाव में घुष्मा भगवान शिव के पार्थिव शिवलिंगों को बहाती थी.
पुत्र की मौत पर परिवार में शोक की लहर छा गयी. घुष्मा को भगवान शिव पर पूरा विश्वास था. रोज की भांति घुष्मा ने उसी तलाव के किनारे 100 शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा प्रारंभ की, थोड़ी देर बाद ही तालाब से उसका पुत्र आता दिखाई दिया. घुष्मा ने जैसे ही पूजा समाप्त की भगवान शिव प्रकट हुए और बहन को दंड देने की बात कही. लेकिन घुष्मा ने ऐसा करने की भगवान से प्रार्थना की. इस बात से शिवजी अत्यंत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने का कहा. तब घुष्मा ने भगवान शिव से इसी स्थान पर निवास करने के लिए कहा. भगवान ने कहा ऐसा ही होगा. तब से यह स्थान घुष्मेश्वर के नाम से जाना जा रहा है.
Chanakya Niti: इन तीन चीजों से स्त्रियों को सदैव दूर रहना चाहिए, नहीं तो उठानी पड़ती है परेशानी