कहते हैं जो भय से मुक्ति दिलाए वो हैं काल भैरव..जिनके सिर पर भैरव का आशीर्वाद हो उसका स्वयं काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शिव के स्वरूप कहे जाने वाले काल भैरव की उत्पत्ति शिव के कारण ही हुई थी. उनके रौद्र रूप से काल भैरव उत्पन्न हुए. लेकिन क्या आप इनसे जुड़ी एक विशेष बात जानते हैं. वो ये कि अगर आपको काशी में रहना है तो काल भैरव की इजाज़त लेना बहुत ही जरुरी माना जाता है. उनकी इच्छा के बाद ही कोई काशी में निवास कर सकता है.


जी हां...ये बात बिल्कुल सही है. यहां तक कि काल भैरव को तो काशी का कोतवाल तक कहा जाता है. जो सदियों से काशी यानि वाराणसी की रक्षा कर रहे हैं. कहते हैं कि काशी में रहने से पहले इनकी इजाज़त तक लेनी पड़ती है और उनसे आज्ञा मिलने के बाद ही काशी में रहा जा सकता है. वहीं जल्द ही काल भैरव की जयंती भी आने वाली है और इस दिन काल भैरव की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है. 


कब है काल भैरव जयंती


हर वर्ष मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव की जयंती मनाई जाती है. इस बार यह तिथि 7 दिसंबर को पड़ने जा रही है. काशी में इनकी महत्ता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां काशी विश्वनाथ के दर्शनों से पहले काल भैरव के दर्शन बेहद जरुरी होते हैं. 


काल भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी कथा


कहते हैं एक बार ब्रह्मा जी, विष्णु और महेश तीनों इस बात को लेकर काफी बहस कर रहे थे कि उन तीनों में से सबसे ज्यादा श्रेष्ठ कौन है. इसी बहस के दौरान ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को लेकर कुछ अपशब्द कह दिए जिससे शिव शंकर क्रोधित हो उठे. उनके इसी रौद्र रूप से शिव ने काल भैरव की उत्पत्ति की. जिन्होंने उत्पन्न होने के बाद ब्रह्मा ने जिस मुख से शिव को अपशब्द कहे थे वो सिर ही काट दिया. लेकिन इससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा. तब शिव ने उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए ये सुझाव दिया था. 


इस तरह काशी पहुंचे थे काल भैरव


तब शिवजी ने बताया था कि तुम पृथ्वी लोक पर ब्रह्मा जी का सिर लेकर जाओ. जहां ये सिर खुद ब खुद हाथ से छूटकर गिर जाएगा वहीं पर तुम पाप से मुक्त हो जाओगे. जब काल भैरव काशी पहुंचे तो वहां पर उनके हाथ से ब्रह्मा जी का सिर गिर गया और काल भैरव वहीं पर स्थापित हो गए. काशी शिव की नगरी भी मानी जाती है. यहां पर शिव काशी विश्वनाथ के रूप में स्थापित हैं और पूजे जाते हैं.