Kabir Jayanti 2021: मान्यताओं के अनुसार, संत कबीर दस का जन्म ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को हुआ था. इस लिए कबीर के अनुयायी एवं कबीर दास की भक्ति में आस्था रखने वाले ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को कबीर जयंती के रूप में मनाते हैं. ये आम जन- मानस में कबीर दास या कबीर साहेब के नाम से लोकप्रिय हैं.


कबीर के जन्म से संबंधित कथा


वैसे तो कबीर दास जी के जन्म के बारे में निश्चत रूप से कुछ भी सही रूप से कह पाना संभव नहीं है. फिर भी एक किंवदंती के अनुसार संत कबीर दास ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन काशी में लहरतारा तलाब के कमल पुष्प पर माता-पिता नीरू और नीमा को मिले थे. कहा जाता है कि इसी दिन ये नीमा और नीरू नामक जुलाहे दंपत्ति को प्राप्त हुए थे. इन्होंने ही कबीर दास जी का पालन-पोषण किया था. इसी कारण से इस दिन को कबीर जयंती के रूप में मनाया जाता है.


कबीर दास जी के दोहों का महत्व


कबीर दास जी ने मध्यकालीन भारत के सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में अमूल्य योगदान दिया. इन्होंने अपने दोहों, विचारों और जीवनवृत्त से तत्कालीन सामजिक, आर्थिक,  धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात किया था. इन्होंने मध्यकालीन भारत के तत्कालीन समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़िवाद, पाखण्ड का घोर विरोध किया.


कबीर दास जी ने उस काल में भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और सामजिक लोगों के बीच आपसी मेल-जोल और भाईचारे का प्रशस्त किया. हिंदू, इस्लाम सभी धर्मों में व्याप्त कुरीतियों और पाखण्ड़ो पर कड़ा प्रहार करते हुए हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया.


कबीर दास जी ने सामजिक कुरीतियों पर कुठाराघात करते हुए “ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय” का संदेश दिया.


कबीर के दोहे



  1. तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

  2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।