Kalashtami 2020: शिव जी के रौद्र रूप को देख जब कांप उठे तीनों लोक, जानें पूरी कथा
Kalashtami 2020: 14 अप्रैल दिन मंगलवार को कालाष्टमी का व्रत है. इस दिन भगवान शिव के विग्रह रूप काल भैरव की उपासना की जाती है. इस दिन पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाले संकटों को दूर करते हैं. आइए जानते हैं इस दिन की पूजा और कथा के बारे में.
Kaal Bhairava puja: कालाष्टमी हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन पूजा करने के साथ साथ व्रत भी रखने का विधान है. जो लोग काल भैरव की पूजा करते हैं उन्हें इस दिन विशेष संयम बरतना होता है क्योंकि कालाष्टमी की पूजा में नियम और विधि का बहुत अधिक महत्व माना गया है.
कालाष्टमी मुहूर्त कालाष्टमी की पूजा रात्रि में अधिक की जाती है. अभिजित मुहूर्त की बात करें तो इस दिन 11:55:49 से 12:47:11 तक है. कालाष्टमी का व्रत सप्तमी तिथि के दिन भी किया जा सकता है.इन बातों का ध्यान रखें कालाष्टमी के व्रत में इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए.इस दिन अन्न का सेवन नहीं किया जाता है. किसी का अहित करने के लिए इस पूजा को नहीं किया जाता है. इस दिन बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य और सरल पूजा है. बिना भगवान शिव और माता पार्वती के काल भैरव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है.
कालाष्टमी व्रत कथा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच श्रेष्टता को लेकर विवाद छिड़ गया. विवाद बढ़ने पर सभी देवता भयभीत हो गए. देवताओं को लगा की अब प्रलय आने से कोई नहीं रोक सकता है. देवताओं ने भगवान शंकर की शरण ली और पूरी समस्या बताई. भगवान शिव ने एक सभा आयोजित की. जिसमें सभी ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि बुलाया गया. सभा में विष्णु व ब्रह्मा जी को भी आमंत्रण दिया गया.
सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं होते हैं. वे महादेव का अपमान करने लगते हैं. इस पर भगवान शिव को भंयकत क्रोध आ जाता है और वे रौद्र रूप धारण कर लेते हैं. भगवान शंकर के इस रूप से तीनों लोक भयभीत हो जाते हैं. भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए. वह श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था. हाथ में दंड होने के कारण वे ‘दंडाधिपति’ कहलाए. उन्होंने ब्रह्म देव के पांचवें सिर को काट दिया तब ब्रह्म देव को उनके गलती का एहसास हुआ. इसके बाद ब्रह्म देव और विष्णु देव के बीच विवाद समाप्त हो गया और उन्होंने ज्ञान को अर्जित किया, जिससे उनका अभिमान और अहंकार नष्ट हो गया.
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