Kalashtami 2022: वैशाख माह में कब है कालाष्टमी व्रत? काल भैरव की पूजा से मिलती है रोग, भय से मुक्ति
हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी व्रत किया जाता है. ये व्रत भगवान शिव के रुद्रवतार काल भैरव को समर्पित होता है. वैशाख माह में कालाष्टमी व्रत 23 अप्रैल, शनिवार के दिन पड़ रहा है.
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हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी व्रत किया जाता है. ये व्रत भगवान शिव के रुद्रवतार काल भैरव को समर्पित होता है. वैशाख माह में कालाष्टमी व्रत 23 अप्रैल, शनिवार के दिन पड़ रहा है. इस विधि-विधान के साथ भगवान शिव के रुद्रावतार काल भैरव की पूजा-अर्चना करने का विधान है. काल भैरव भगवान शिव के पांतवे अवतार माने जाते हैं. भगवान शिव के क्रोध स्वरूप में काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी.
बता दें कि भगवान शिव ने माता सति के पिता और राजा दक्ष प्रजापति को दंड देने केलिए ये अवतार लिया था. मान्यता है कि काल भैरव की पूजा अराधना से व्यक्ति को रोग, दोष, भय आदि से मुक्ति मिलती है. वहीं, काल भैरव की कृपा प्राप्त होने पर व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता. आइए जानते हैं कालाष्टमी व्रत की तिथि, पूजा मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में.
कालाष्टमी 2022 तिथि
हिंदू पंचाग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 23 अप्रैल दिन शनिवार सुबह 06 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 अप्रैल रविवार सुबह 04 बजकर 29 मिनट पर समापन होगा. उदयातिथि के आधार पर कालाष्टमी व्रत 23 अप्रैल को रखा जाएगा.
कालाष्टमी पूजन मुहूर्त 2022
ज्योतिषीयों के अनुसार कालाष्टमी व्रत के दिन त्रिपुष्कर योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है. इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी. और हर कार्य में सफलता मिलेगी.
इस दिन शाम 06 बजकर 54 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि योग लगेगा, और 24 अप्रैल प्रात: 05 बजकर 47 मिनट तक रहेगा. वहीं, त्रिपुष्कर योग सुबह 05 बजकर 48 मिनट से प्रारंभ होकर अगसे दिन प्रात: 06 बजकर 27 मिनट तक रहेगा. ऐसे में आप सुबह से रात तक कभी भी पूजा कर सकते हैं. इस दिन अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक होगा.
कालाष्टमी पूजन विधि
कालाष्टमी के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें. स्नान आदि से निविर्त होने के बाद व्रत का संकल्प लें और पवित्र जल से आमचन करें. अब पहले सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें. इस दिन भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें. अंत में भगवान शिव की आरती करते हुए अपनी मनोकामनाएं प्रभु के सम्मुख रखें. दिनभर उपवास रखें. शाम को आरती के बाद फलाहार करें. अगले दिन सुबह स्नान-पूजा पाठ के बाद ही व्रत खोलें.
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