हिंदू धर्म में मंत्रों का बहुत महत्व है. पूजा के समय और उसके बाद भी मंत्रों का उच्चारण किया जाता है. सभी देवताओं के लिए अलग-अलग मंत्र का उच्चारण किया जाता है.


एक मंत्र ऐसा भी है जिसका उच्चारण आरती के बाद जरूर किया जाता है. ये भगवान शिव का मंत्र है. इस मंत्र को स्तुति के रूप में उच्चारित किया जाता है.


यह मंत्र है 


कर्पूरगौरं करूणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबंभवानी सहितं नमामि।।


(कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले। जो साक्षात करूणा के अवतार हैं. जो समस्त सृष्टि के सार हैं. जो सर्पों को माला की तरह अपने गले में धारण करते हैं. जो शिव माता पार्वती सहित मेरे हृदय में निवास करते हैं मेरा उनको नमन है.)


माना जाता है कि भगवान शिव की यह स्तुति भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के समय भगवान विष्णु के द्वारा गाई गई थी.


ब्रह्मा, विष्णु महेश में महेश अर्थात् शिव सबसे बड़े हैं इसलिए भी आरती के बाद इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है.


शिव जी श्मशान में निवास करते है और अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं लेकिन इस मंत्र में भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है.


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