करवा चौथ यानि सुहागिनों का त्यौहार. इस दिन दिन करवा माता का व्रत कर सुहागिनें अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना करती हैं. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर हर साल आने वाला ये व्रत इस बार 4 नवंबर को है. इस व्रत के दौरान दिन में पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. और रात को चंद्रमा के दीदार कर ये व्रत संपन्न होता है. 


वहीं दिन में व्रती को इस व्रत की पौराणिक कथा को ज़रुर सुनना चाहिए. क्योंकि इसके श्रवण का पुण्य भी अवश्य मिलता है. चलिए बताते हैं आपको करवा चौथ व्रत की क्या है कथा. 


करवा चौथ कथा


बहुत समय पहले एक साहूकार के सात बेटे थे और उनकी एक बहन थी जिसका नाम था करवा. सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। वो खाना भी तब खाते थे जब उनकी बहन कुछ खा लेती थी. एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपने व्यापार-व्यवसाय को बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे तो  बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना तभी खाएगी जब चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य दे देगी. लेकिन चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल थी. 


छोटे भाई से नहीं देखी गई बहन की स्थिति


सातों भाईयों में सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की ये हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह दीपक ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। 


करवा को मिलता है पति की मृत्यु का समाचार


लेकिन जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालते ही उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश वह करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। जिससे वह बौखला जाती है। तब उसकी भाभियां उसे सच बताती हैं कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ही ऐसा किया है। जब करवा को इस बात की सच्चाई पता चलती है तो निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर ही रहेगी। ऐसा प्रण लेते हुए वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। 


फिर से आया करवा चौथ


एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह हर भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने को कहती है. लेकिन जब छठे नंबर की भाभी आती है तो वो कहती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था. इसीलिए उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना।ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।


अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।


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