4 नवंबर को करवा चौथ का पर्व है और ये दिन विवाहित स्त्रियों के लिए खास महत्व रखता है. इस पूरे दिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए निर्जल व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रदेव की पूजा के बाद ही व्रत खोला जाता है. वहीं इस रात को चांद को छलनी में से देखने कि विशेष परंपरा है जो बेहद प्राचीन है. लेकिन आखिरकार इस प्रथा का महत्व क्या है और क्यों इस दिन चांद को छलनी में से ही देखा जाता है….चलिए बताते हैं इस परंपरा के पीछे जुड़ा अहम कारण.


छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल


करवा चौथ के व्रत की रात चांद को महिलाएं छलनी में से देखती हैं और फिर उसी छलनी में से देखा जाता है पति का चेहरा. लेकिन अक्सर ये सवाल मन में उठता रहता है कि इस परपंरा के पीछे कारण क्या है. दरअसल, छल से बचने के लिए छलनी का इस्तेमाल किया जाता है. कहते हैं प्राचीन समय में करवा नाम की विवाहित लड़की थी जिसने शादी के बाद पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था. उस वक्त वो अपने मायके में थी और उसके भाईयों से उसका भूखा रहना देखा नहीं गया. इसीलिए इनमें से सबसे छोटे भाई ने पेड़ की डालियों में एक छलनी के पीछे जलता हुआ दीपक रखा और अपनी बहन करवा को भ्रम से चांद दिखाकर उसका व्रत खुलवा दिया.जिससे करवा माता रुष्ट हुईं और अगले ही पल करवा के पति की मृत्यु का समाचार मिला. 


भूल सुधार के लिए अगले साल विधि विधान से किया व्रत



अपनी इस भयंकर भूल का अहसास जब करवा को हुआ तो उसने अगले साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी पर फिर से करवा माता को निमित्त ये व्रत विधि विधान से किया. और हर छल से बचने के लिए इस बार हाथ में छलनी लेकर चंद्र देव के दर्शन किए. इससे प्रसन्न होकर माता ने उसके व्रत को स्वीकार किया और पति को जीवित कर दिया. तब से लेकर अब तक हमेशा छलनी में से ही चांद देखने की परंपरा है.


नई छलनी में से देखना चाहिए चांद


हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन छलनी में से चांद देखना चाहिए. जिससे किसी तरह का छल ना हो और माता करवा व्रती महिला के विधि विधान से किए गए व्रत को स्वीकार करे.