Karwa Chauth 2024: पति की लंबी आयु के लिए सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर 2024 को करेंगी. ये व्रत अखंड सौभाग्य का प्रतीक है. इसके प्रताप से सुहाग को लंबी आयु का वरदान मिलता है.
यही वजह है कि करवा चौथ व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत कर, पूरे विधि विधान के साथ माता करवा और गणेश जी की पूजा करती हैं. फिर रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती है. आइए जानते हैं पति की दीर्धायु के लिए करवा चौथ के दिन कौन की कथा का पाठ करना चाहिए.
1- करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में तुंगभद्रा नदी करवा देवी अपने पति के साथ रहती थी. एक बार जब करवा के पति स्नान के लिए नदी में गए तो मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ उसे अंदर खींच लिया. मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे.
करवा पति की चीख सुनते ही नदी के पास पहुंचीं. पति को मृत्यु के मुंह में जाता देख करवा ने एक कच्चे धागे से मगरमच्छ को पेड़ से बांध दिया. मगरमच्छ टस से मस नहीं हो पा रहा था. करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे. तभी करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा.
यमराज करवा को बताया कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उसके पति की मृत्यु का समय निकल है और मगरमच्छ का आयु शेष है.यम देव के ऐसे वचन सुनकर करवा क्रोधित हो गई और यमराज को श्राप देने की चेतावनी दे डाली.
करवा के पतिव्रता धर्म को देकर प्रसन्न हुए. उन्होंने करवा के पति के प्राण बचा लिए और उसे जीवनदान दिया वहीं मगरमच्छ मृत्यु को प्राप्त हुआ. मान्यता है कि ये घटना कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन हुई थी. यही वजह है कि पति की लंबी आयु के लिए इस सुहागिनें व्रत रखकर शिव परिवार, करवा माता की पूजा करती हैं. हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना.
2- करवा चौथ व्रत कथा (साहुकार वाली कथा)
इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में एक साहुकार अपनी पत्नी लीलावती के साथ रहता था. जिससे उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी. एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा. रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा. इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है. चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी.
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ. साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी. घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है. अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो.
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो. ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं.
साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों के दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया. वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया.
वीरावती अपने पति को मृत देखकर विलाप करने लगी, करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी. उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची. देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा.
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती. अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया.
करवा चौथ माता की जय
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