एक युवा का केशांत संस्कार कब किया जाता है, इसके पीछे क्या कारण है, जानें
Keshant Sanskar: 16 संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण माना है. केशांत संस्कार में पहली बार किशोर युवा के बाल और दाढ़ी काटी जाती है. जानते हैं केशांत संस्कार का महत्व.
Keshant Sanskar: हिंदू धर्म के अनुसार वैदिक संस्कार ही मानव जीवन को महान बना सकते हैं. यहीं वजह है कि हिंदूओं में 16 संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण माना है. इन्हीं में से एक है केशांत संस्कार. जिस तरह से मुंडन संस्कार में बच्चे के बालों को निकाला जाता है, उसी प्रकार केशांत संस्कार में पहली बार किशोर युवा के बाल और दाढ़ी काटी जाती है.
केशांत संस्कार वेदारंभ संस्कार के समाप्त होने पर किया जाता है, इसके जरिए युवा को को बताया जाता है कि अब उसे सामजिक जिम्मेदारियों का पालन करना है. आइए जानते हैं केशांत संस्कार का महत्व, इसे कब करें.
केशांत संस्कार महत्व (Keshant Sanskar Significance)
केशांत दो शब्दों से मिलकर बना है. केश का अर्थ बालों से और अंत यानी समाप्त है. अर्थात किसी व्यक्ति के बालों को समाप्त करना. ये पहली बार होता है जब बालक अपने दाढ़ी और मूंछ को हटाता है. यहीं से उसका किशोरावस्था समाप्त होता है और वो गृहस्थ जीवन की ज़िम्मेदारी उठाने योग्य बन जाता है. केशांत संस्कार एक युवा के वेदारंभ संस्कार की समाप्ति के पश्चात किया जाता है क्योंकि उसके बाद वह गुरुकुल से अपने घर और समाज में दोबारा लौटता है. इसके जरिए बताया जाता है कि अब उस व्यक्ति को गुरुकुल में मिली शिक्षा से समाज का कल्याण करना है.
केशांत संस्कार कब करें (Keshant Sanskar Time)
केशांत संस्कार 16 साल की उम्र से पहले नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे पहले वह वेदारंभ संस्कार के नियमों का पालन कर रहा होता है जिसमें उसे गुरुकुल में रहकर सिर तथा दाढ़ी के बाल कटवाने की मनाही होती है. जब बालक की गुरुकुल की शिक्षा पूरी हो जाए तो केशांत संस्कार कर उसे घर भेज दिया जाता है. इसे करने के लिए शास्त्रों में उत्तरायण का समय उचित बताया गया है.
केशांत संस्कार मंत्र (Keshant Sanskar Mantra)
इस संस्कार को करते वक़्त मुख्य-तौर पर इस मंत्र का जप करना अनिवार्य होता है.
“केशानाम् अन्तः समीपस्थितः श्मश्रुभाग इति व्युत्पत्त्या केशान्तशब्देन श्मश्रुणामभिधानात् श्मश्रुसंस्कार एवं केशान्तशब्देन प्रतिपाद्यते। अत एवाश्वलायनेनापि ‘श्मश्रुणीहोन्दति’। इति श्मश्रुणां संस्कार एवात्रोपदिष्टः।”
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