सफलता पर की जाने वालीं विभिन्न चर्चाओं में अक्सर कछुआ और खरगोश की कहानी सुनाई जाती है. इन दोनों के बीच दौड़ होती है. कछुआ फर्राटा भरता है. कछुए से बहुत आगे निकल जाता है. आगे जाकर वह सुस्ताने लगता है. इधर, कछुआ धीमी गति से लगातार चलकर लक्ष्य पर खरगोश से पहले पहुंच जाता है.
इस चर्चित मोटिवेशनल स्टोरी में सबसे महत्वपूर्ण बात है, उम्र और अनुभव. सब जानते हैं कि खरगोश की उम्र कम होती है. उसकी युवावस्था जल्द आती है. वहीं कछुए की उम्र तीन सौ वर्ष से भी ज्यादा होती है यानी उसकी युवावस्था तक कई खरगोश अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं. एक युवा कछुए और एक युवा खरगोश में उम्र, अनुभव और शारीरिक सामर्थ्य का अतुलनीय अंतर होता है. इसका आंकलन खरगोश अनुभवहीनता में नहीं कर पाता है. जबकि कछुए को निश्चित ही इसका आभास होता है कि खरगोश का व्यवहार किस प्रकार का हो सकता है.
मैनेजमेंट के नजरिए से देखें तो कंपनी में कई गैर अनुभवी और नए लोग कार्य करते हैं. ये लोग शुरुआती सक्रियता से स्वयं को अपने सीनियर्स से ज्यादा तेज मानने लगते हैं. जबकि यह सच नहीं होता क्योंकि जो वरिष्ठ होते है वे कभी नवयुवा रह चुके होते हैं. एक वरिष्ठ जो किसी प्रतिष्ठान में बड़ा पद और सम्मान पाता है वह उसके अनुभव की उपलब्धि होता है. उसे पता होता है कि लंबे अंतराल में किसी प्रकार का व्यवहार जरूरी है. उसके निर्देशन में नए कर्मचारी बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं. वरिष्ठ के अभाव में उनका व्यवहार भी तेजी से भागते खरगोश जैसा हो सकता है. ऐसे में वे लक्ष्य पाने में किसी भी गलती से चूक सकते हैं.
बता दें कि कछुए और खरगोश की दौड़ के जितने संस्करण हैं, उसमें हर बार कछुआ जीतता है क्योंकि उसे उसके अनुभव का लाभ मिलता है. खरगोश की जीत तभी होती है जब उसे कछुए का साथ मिलता है.
भावार्थ यह है कि योग्यता और शि़क्षा के लिए उम्र और अनुभव का भी बड़ा महत्व होता है. इसका हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए एक वर्ष में कितने मौसम होते हैं और उनका कैसा प्रभाव रहता है यह जानने के लिए वर्ष भर जीना भी जरूरी है. जबकि कई जीव ऐसे हैं जो ये कभी जान ही नहीं सकते हैं. उनका जीवन चक्र एक वर्ष से भी छोटा होता है.