खरमास का शास्त्रीय और वैज्ञानिक महत्व
प्रत्येक वर्ष में अचानक कई शुभ कार्य बंद कर दिए जाते हैं यह कहकर कि खरमास लग रहा है. क्या है ऐसा इन दिनों में जब पूरे एक महीने कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता? तो इसका शास्त्रीय पक्ष भी है और वैज्ञानिक पक्ष भी है. दोनों पर हम आगे विचार करेंगे. एक मात्र भगवान सूर्य देव ऐसे हैं जो हमे प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं. दिसंबर माह के मध्य (16 दिसंबर 203) में सूर्य देव के धनु राशि में प्रवेश करते ही खरमास आरम्भ हो गया है.
जब भी सूर्य बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करते हैं, तब खरमास लगता है और सारे मांगलिक प्रसंग इसलिए रोक दिए जाते हैं क्योंकि खरमास में सूर्य का तेज बृहस्पति में प्रवेश करते ही कमजोर हो जाता है, ऐसी परिस्थिति में पृथ्वी पर सूर्य का तेज और ताप कम हो जाता है. इस कारण से एक माह के लिए मांगलिक कार्य वर्जित हैं. जब सूर्य गुरु की राशि में प्रवेश करता है, तब सूर्य की तेज उष्णता से गुरु की राशि धनु और मीन कमजोर हो जाती है. ऐसी स्थिति में शुभ कार्यों के पूर्ण न होने की सम्भावना बनी रहती है.
खरमास का शास्त्रीय पक्ष क्या है?
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, ज्योतिषीय में खरमास को धन्वर्क दोष और मीनार्क दोष कहा जाता है. खरमास का अर्थ हैं खर (कठोर)+मास (महीना). अर्थात वह महीना जो खुरदरा हो.
मुहूर्तगणपति (हरिशंकर सूरी), अनुसार: –
मार्गशीर्षे धनुष्यर्के मीनार्क: फाल्गुनेSशुभः।
सौरो व्रतविवाहादौ मास: सर्वत्र शस्यते।।
अर्थात:- चंद्र के मास अनुसार मार्गशीर्ष एवं फाल्गुन में विवाह को शुभ नहीं माना जाता है और तो और सूर्य मास के अनुसार धनु एवं मीन राशि में सूर्य के रहने पर विवाह को कभी शुभ नहीं माना जायेगा.
इन कामों पर रहती है रोक: खरमास के समय विवाह,मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश, नया-वाहन या नींव रखने का मुहूर्त आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इनमें सफलता संदिग्ध है.
खरमास के दौरान कौन से कार्य करें?: खरमास में कुछ धार्मिक कृत्य फलदायी बताए गए हैं. पुरातन मान्यताओं के अनुसार, खरमास के दौरान नियमित सूर्य की पूजा करें. रोज स्नान के पश्चात सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए. खरमास के दुष्प्रभाव से बचने के लिए इनदिनों में सूर्य के मंत्रों का जाप करना चाहिए. रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा की जानी चाहिए. इसीलिए खरमास के समय हर रविवार व्रत रखना बहुत शुभ माना गया है. रविवार के दिन गुड़, गेंहू, लाल या नारंगी कपडे़ का दान भी किया जा सकता है. सूर्य चालीसा का पाठ करना अतिउत्तम माना गया है. खरमास में बृहस्पति की पूजा करना भी शुभ मानी गई है जिससे जीवन में प्रगति होती है. खरमास में भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है. बृहस्पति पूजा में इस मंत्र का जाप करें (ॐ ब्रं बृहस्पति नमः).
सूर्य और भगवान विष्णु को अर्घ्य देने से शांति और समृद्धि आती है. सूर्य को कुंडली मे मजबूत करने के लिए सूर्य को अर्घ्य देते हुए इस मंत्र का जाप करें-ॐ सूर्याय नम:, ॐ घृणि सूर्याय नम:. साथ ही सूर्य देव के आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी किया जा सकता है जोकि वाल्मिकी रामायण में भी वर्णित है. दान-पुण्य के कार्य करना चाहिए. इस दौरान सन्ध्या के समय तुलसी के पौधे के नीचे दीपक जलाना, तुलसी को जल चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है.
खरमास का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी जान लें-
खरमास का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इसकी वर्जनाएं और इस दौरान किए जाने वाले कार्य हमें शुद्धता और पवित्रता की ओर ले जाते हैं. समस्त वैज्ञानिक जगत इस बात को मानता है कि सूर्य किरणों का ताप किटाणु नाशक है. चूंकि इस दरम्यान किरणों का ताप क्षीण भी होता है तो वातावरण में कई तरह के बैक्टीरिया और किटाणुओं में वृद्धि होती है जिससे बचाव के लिए ही हमारे ऋषि मुनियों ने ऐसे नियम बनाए हैं. ऐसे में कई तरह के ज्वर और अन्य बीमारियों के फैलने का डर बना रहता है. इनमें संसर्गजन्य बीमारियां भी हो सकती हैं. इन दिनों पूरे भारत में ठंडी हवाएं चल रही हैं जिसको सहना बहुत कठिन है, कई लोग तो ठंड के मारे स्नान तो छोड़ो घर से बाहर नहीं निकलते इसलिए विवाह, मुंडन आदि कार्य इन दिनों नहीं हो तो वह उचित है. इसलिए भी खरमास में कड़ाई से इन बन्धनों का पालन आवश्यक है. शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से खरमास में बनाए गए नियमों का पालन करना उचित है.
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