द्रौपदी नहीं, दासी के श्राप के कारण हुआ था धृतराष्ट्र का सर्वनाश
- हंस की आंख निकालने के कारण जन्मांध पैदा हुए. - पत्नी गांधारी के परिवार को जेल में रखकर भूखे मारा. - दासी ने अनाचार पर दिया था जलकर मरने का श्राप.
महाभारत युद्ध के लिए किस्सों-किताबों में भले ही पांडवों से अन्याय और द्रौपदी के अपमान को लिखा और बताया गया है, लेकिन इस भयंकर नरसंहार के मूल में एक ऐसा व्यक्ति था, जिसका चित्रांकन हमेशा से एक असहाय राजा के तौर पर होता है. दरअसल ये कोई और नहीं हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र थे. एक जन्मांध की क्रूरता की करतूतें ऐसी रहीं, जिसने न सिर्फ राज्य का सर्वनाश कराया बल्कि अपने कुल को भी पूरी तरह मिटाकर छोड़ा. धृतराष्ट्र बेहद क्रूर और निर्दयी थे और इस आदत के चलते वह जन्म से मृत्यु तक परिवार के लिए मुसीबत बने रहे.
हंस की आंख निकाली थी, इसलिए अंधे पैदा हुए
कहा जाता है कि पूर्व जन्म के पापों के चलते ही धृतराष्ट्र जन्मांध पैदा हुए. पूर्व जन्म में भी धृतराष्ट्र बेहद निर्दयी राजा थे. एक बार वे सैनिकों के साथ राज्य भ्रमण पर गए तो उनकी नजर तालाब में बच्चों के साथ अठखेलियां करते हंस के परिवार पर पड़ी. मगर अपनी क्रूर मनोदशा के चलते उन्होंने सैनिकों से हंस की आंख निकलवा ली. दर्द से बिलखते हंस की असहनीय दर्द से मौत हो गई. बच्चे भी मृत्यु को प्राप्त हो गए. मरते हुए हंस ने उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारी भी यही दुर्दशा होगी. इसके असर से धृतराष्ट्र अगले जन्म में अंधे पैदा हुए और सभी संतानें भी इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुईं.
पत्नी के परिवार को जेल में भूखा मारा
भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी गांधारी से तय किया, मगर ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है. इसलिए पहला विवाह एक बकरे से कराया गया. इसके बाद बकरे की बलि दे दी गई. इसके बाद गांधारी विधवा मानकर धृतराष्ट्र से विवाह कर दिया गया. अब गांधारी विधवा थीं, इसका पता लगने पर आग बबूला धृतराष्ट्र को शक हुआ कि न जाने किस कारण विवाहित गांधारी का पति मारा गया. धृतराष्ट्र ने धोखे के लिए अपने ससुर राजा सुबाल को माना और पूरे परिवार को कारागार में डाल दिया. यहां पूरे परिवार की जगह सिर्फ एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था, भूखे परिवार ने परिवार में कोई तो जीवित बचे, इसलिए यह भोजन सबसे छोटे पुत्र शकुनि को दिया जाए. ऐसे में बाकी परिवार भूख से मर गया और शकुनि बहन गांधारी के साथ हस्तिनापुर में बचा रहा गया, जिसका बदला उसने कुरू वंश का सर्वनाश करवाकर लिया.
दासी से किया अन्याय, श्राप से दावाग्नि में जलकर मरे
धृतराष्ट्र जन्मांध ही नहीं, कामांध भी थे. गांधारी और उनके सौ पुत्र नहीं बल्कि 99 पुत्र और एक पुत्री दुशाला थे. इस दौरान गांधारी गर्भवती थीं तो धृतराष्ट्र ने राजमहल की दासी से अनाचार किया, जिससे युयुत्सु का जन्म हुआ. इस तरह कौरव सौ पूरे हुए. आहत दासी ने धृतराष्ट्र को दावाग्नि में भस्म होने का श्राप दिया, इस कारण उनकी मौत जंगल में जलने से हुई.