चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलता है इस्लामी कैलेंडर, जानें क्या है इसकी अहमियत
इस्लामी कैलेंडर चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलता है. इस्लामी कैलेंडर में महीने 29 या 30 दिन के होते हैं. एक साल 354.36 दिन का ही होता है.
नई दिल्ली: दुनिया में एक नहीं बल्कि अनेक कैलेंडर हैं और हर समाज में किसी न किसी एक कैलेंडर की अहमियत बहुत ज्यादा होती है. कुछ कैलेंडर किसी समाज की जीवनशैली और उनके मजहबी रस्म में महत्वपूर्ण होते हैं. इसी तरह से इस्लामी कैलेंडर भी मुसलमानों की जिंदगी को खासा प्रभावित करते हैं.
इस्लामी कैलेंडर को दरअसल हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत आज से 1440 साल पहले हुई. आने वाले चंद दिन में इस्लामी साल का न्यू ईयर है. इसलिए इसकी चर्चा खास तौर पर की जा रही है. इस्लामी कैलेंडर का आने वाला नया साल 1441 हिजरी होगा.
चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलता है इस्लामी कैलेंडर
हर कैलेंडर अपने-अपने हिसाब से चलते हैं. इस्लामी कैलेंडर चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलते हैं और साल में इसके भी 12 महीने होते हैं. इस्लामी कैलेंडर में महीने 29 या 30 दिन के होते हैं. एक साल 354.36 दिन का ही होता है. ईस्वी कैलेंडर सूरज के हिसाब से तय होता है और इसमें महीने 30 या 31 दिन होते हैं और साल 365 दिनों का होता है.
बता दें कि चांद देखने के साथ ही इस्लामी कैलेंडर के हर नए महीने की शुरुआत होती है. इसका पहला महीना मुहर्रम होता है, जबकि आखिरी महीने को ज़िलहिज्जा कहते हैं. आज 26 अगस्त की तारीख है, जबकि इस्लमी कैलेंडर के हिसाब से ज़िलहिज्जा की 24 तारीख है. इस हिसाब से इस्लामी कैलेंडर का नया साल एक सितंबर या दो सितंबर से शुरू हो सकता है. जो कैलेंडर चांद पर निर्भर करता है उसे क़मरी कैलेंडर भी कहते हैं.इस्लामी कैलेंडर की खास बात ये है कि जहां ईस्वी कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत रात को 12 बजे से होती है वहीं, हिजरी साल यानि इस्लामी कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत शाम (सूरज डूबने के बाद) से होती है.
इस्लामी कैलेंडर का महत्व
अरब दुनिया में इस्लामी कैलेंडर का महत्व आम कामकाज के लिए भी होता है, लेकिन दुनिया में जहां-जहां भी मुसलमान हैं, वो किसी न किसी रूप में इस्लामी कैलेंडर से बंधे हुए और वो उसे जरूर फॉलो करते हैं क्योंकि पर्व त्यौहार इसी कैलेंडर के आधार पर मनाए जाते हैं.
मुसलमान के तीन मुख्य त्यौहार की तारीख इसी इस्लामी कैलेंडर से तय होती है. ईद इस्लामी कैलेंडर के 10वें महीने की पहली तारीख को मनाई जाती है. यानि नौवें महीने रमजान के खत्म होने के बाद पहली शव्वाल (10वां महीना) को ईद मनाई जाती है.
इस तरह बकरदी इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने ज़िलहिज्जा की 10वीं तारीख को मनाई जाती है. जबकि मुहर्रम का मातम मुहर्रम के महीने में उसकी 10वीं तारीख को मनाया जाता है. इस तरह से शब-ए-बरात, शब-ए-कद्र जैसे त्यौहार या रस्म भी इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ही मनाए जाते हैं.
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