देश के अलग-अलग राज्यों में ‘मकर संक्रांति’ को किन नामों से जाना जाता है, यहां जानिए
अलग-अलग परंपराओं के रंग से सजा मकर संक्रांति का त्योहार काफी महत्वपूर्ण है. इसे देश के हर कोने में विभिन्न नामों और तरीके से मनाया जा रहा है. ग्रहों के राजा सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब यह घटना सूर्य की मकर संक्रांति कहलाती है.
पूरे देश में आज मकर संक्रांति का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. अलग-अलग परंपराओं के रंगों से सजा ये त्योहार काफी महत्वपूर्ण है. इसे देश के हर कोने में विभिन्न नामों और तरीके से मनाया जा रहा है. ग्रहों के राजा सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब यह घटना सूर्य की मकर संक्रांति कहलाती है. मकर संक्रांति को ही सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं. सूर्य देवता के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही एक माह से चला आ रहा खरमास भी समाप्त हो जाता है. चूंकि खरमास में सभी मांगलिक कार्यों की मनाही होती है इसलिए मकर संक्रांति से खरमास समाप्त होते ही मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं.
मकर संक्रांति को विभिन्न नामों और तरीकों से मनाया जाता है
उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. वहीं तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है। असम में इसे माघ बिहू और गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं. पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है. इस दिन पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्व होता है और लोग बेहद आनंद और उल्लास के साथ पतंगबाजी करते हैं. गुजरात में इस दिन पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं.
बंगाल में आज के दिन गंगासागर पर लगता है मेला
बंगाल में आज के दिन गंगासागर पर मेले का आयोजन होता है. इस पर्व पर स्नान करने और तिन दान करने की परंपरा चली आ रही है. पौराणिक कथा के अनुसार यशोदा जी ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था. इसी दिन मां गंगा भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सांगर में जाकर मिल गई थी. यही कारण है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर पर भारी भीड़ होती है. हालांकि इस साल कोरोन की वजह से मेले की रौनक फीकी है.
बिहार में तिल संक्रांत कहा जाता है
बिहार राज्य में भी मकर संक्रांति का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार को यहां तिल संक्रांत या दही चूड़ा के नाम से जाना जाता है. आज के दिन उड़द की दाल, तिल, चावल आदी देने की परंपरा बरसों से चली आ रही है.
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