एक बार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने बड़ा यज्ञ कराया लेकिन उस यज्ञ में उन्होंने माता सती व उनके पति भगवान शिव को न्योता नहीं दिया. फिर भी सती से हठ किया और वो यज्ञ में बिना बुलाए ही जा पहुंचीं. जहां राजा दक्ष ने उनके समक्ष भोलेनाथ को खूब अपमानित किया. पति के लिए ऐसे कटु वचन सती सह ना सकी और उन्होंने हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिया. जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो वे काफी क्रोधित हुए और गुस्से में उन्होंने रौद्र रूप धारण कर खूब तांडव किया और विध्वंस मचाया. वो सती के शव को लेकर घूमने लगे.
भगवान शिव का ऐसा रूप देख देवतागण परेशान हो उठे और फिर उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को शांत कराने की प्रार्थना की. तब विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता शरीर के 51 टुकड़े किए और जहां ये टुकड़े गिरे वो शक्तिपीठ कहलाए. इन्हीं में से दो शक्तिपीठ हिमाचल के बिलासपुर और उत्तराखंड के नैनीताल में भी मौजूद है. कहते हैं इन जगहों पर माता सती के नयन गिरे थे इसीलिए ये नैना देवी मंदिर कहलाए.
नैनीताल शहर में मौजूद है नैना देवी मंदिर
अगर आप नैनीताल घूमने जाएं तो नैनी झील से बिल्कुल सटकर नैना देवी का मंदिर है जो देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है. कहते हैं इसी जगह पर माता सती का एक नयन गिरा था और उनकी पिंडी स्वरूप में यहां पूजा की जाती है. मान्यता है कि यहां के दर्शन करने से आंखों से संबंधित रोग दूर होते हैं. सिर्फ यही नहीं जिस नैनी झील के किनारे ये मंदिर मौजूद है उस झील में स्नान करने से भी मानसरोवर झील के समान पुण्य मिलता है. इसी झील के नाम पर इस खूबसूरत शहर का नाम नैनीताल पड़ा. यहां देवी नंदा देवी के नाम से विख्यात हैं. नैनीताल आने वाला हर पर्यटक यहां दर्शन करना कभी नहीं भूलता.
बिलासपुर में भी है नैना देवी का मंदिर
मां सती का एक नयन जहां नैनीताल में गिरा था तो वहीं दूसरा नयन हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में. प्राकृतिक खूबसूरती से लबरेज़ ये मंदिर पर्यटकों को सदैव ही अपनी ओर खींचता है. इस मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा है जिसे नयना देवी की गुफा ही कहा जाता है. तो वहीं मंदिर से थोड़ी ही दूर एक ताल है जिसकी पौराणिक मान्यता है. चूंकि ये शक्तिपीठ एक पहाड़ी पर स्थित है इसीलिए यहां प्रशासन द्वारा उडनखटोले का भी बंदोबस्त है इसके अलावा माता के मंदिर तक की यात्रा पैदल भी की जा सकती है.