Dhanteras से लेकर Diwali तक हर रोज़ जलाए जाते हैं दीपक, हर तरह की विपत्ति को करते हैं दूर
भगवान धनवंतरी की विशेष पूजा इस दिन की जाती है तो साथ ही इस दिन मृत्यु व आयु के देवता यम की पूजा का विधान है. धनतेरस के दिन जब सभी सदस्य घर आ चुके हों तब यम के नाम का दीपक घर के बाहर ज़रुर जलाना चाहिए.
धनतेरस से दीवाली के पर्व का आगाज़ हो जाता है. इस दिन भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है तो अगले दिन नरक चौदस पर यम के नाम का दीपक घर के मुख्य द्वार पर जलाया जाता है. वहीं तीसरे दिन दीवाली तो है ही दीपों का त्यौहार. लेकिन क्या आप जानते हैं कि तीन दिनों तक जलाए जाने वाले दीपकों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है और ये किस तरह से पौराणिक महत्व रखते हैं.
अपनी इस रिपोर्ट में हम इसी के बारे में आपको बताएंगे कि धनतेरस से लकर दीवाली तक आखिर क्यों दीपक जलाए जाते हैं. और ये किस तरह से इतने महत्वपूर्ण हैं.
धनतेरस
भगवान धनवंतरी की विशेष पूजा इस दिन की जाती है तो साथ ही इस दिन मृत्यु व आयु के देवता यम की पूजा का विधान है. धनतेरस के दिन जब सभी सदस्य घर आ चुके हों तब यम के नाम का दीपक घर के बाहर ज़रुर जलाना चाहिए. इसे दीप दान करना कहा जाता है. इसके लिए मिट्टी के दीये में सरसों का तेल डालें और घर के दरवाजे के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीये का मुंह करके रख दें. दक्षिण दिशा को यम की दिशा कहा गया है. साथ ही इस मंत्र का उच्चारण भी करें -
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।
नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी जिसे आम बोलचाल की भाषा में छोटी दीवाली कहा जाता है. इस दिन भी यम के नाम का दीया जलाया जाता है. लेकिन खास बात ये है कि ये दीपक घर के सबसे बुजुर्ग सदस्य जलाते हैं. वो भी सूप यानि गेंहू साफ करने के पात्र में रखकर. कहते हैं जलाने के बाद इस दीये को घर की दहलीज़ से थोड़ी दूर रखना चाहिए. कहते हैं ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता.
दीवाली
तीसरे दिन आता है दीवाली का त्यौहार. जिसे दीपों का त्यौहार भी कहा जाता है. क्योंकि इस अमावस्या की रात को दीयों की रौशनी से जगमग कर दिया जाता है. कहते हैं इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा में गाय के घी का दीया जलाना चाहिए. इससे परिवार पर आने वाला हर संकट टल जाता है. व पितरों का आशीर्वाद भी बना रहता है.