निसंतान दंपत्ति Ahoi Ashtami पर करें राधा कुंड में स्नान, संतान प्राप्ति का मिलता है आशीर्वाद
मथुरा से 26 किलोमीटर दूर मौजूद राधाकुंड धाम पौराणिक और धार्मिक महत्व रखता है। खासतौर से उन महिलाओं व दंपत्तियों के लिए जो आज भी संतान सुख से वंचित हैं.
अहोई अष्टमी(Ahoi Ashtami 2020) का व्रत रखकर अहोई माता से संतान की सुख समृद्धि व खुशहाली का आशीर्वाद मांगा जाता है. लेकिन कुछ ऐसे भी दंपत्ति जो संतान सुख से वंचित रहते हैं. भले ही लाख जतन करें लेकिन फिर भी संतान प्राप्ति की इच्छा अधूरी ही रहती है. लेकिन ब्रज में एक चमत्कारिक कुंड ऐसा भी है जिसमें एक डुबकी आपकी संतान प्राप्ति की इच्छा को पूरा कर सकती है.
राधा कुंड का है महत्व (Radha Kund Significance)
मथुरा से 26 किलोमीटर दूर मौजूद राधाकुंड धाम पौराणिक और धार्मिक महत्व रखता है। खासतौर से उन महिलाओं व दंपत्तियों के लिए जो आज भी संतान सुख से वंचित हैं. क्योंकि मान्यता है कि राधा कुंड में डुबकी लगाने से मां का आशीर्वाद मिलता है और संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है. विशेष तौर पर अहोई अष्टमी की रात 12 बजे अगर इस कुंड में स्नान किया जाए तो पुत्र रत्न प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है. इसीलिए हर साल अहोई अष्टमी पर यहां महास्नान का आयोजन होता है. जिसमें हज़ारों की तादाद में लोग पहुंचते हैं.
भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी को दिया था वरदान
इस कुंड के महत्व के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है, जिसके मुताबिक एक बार अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धारण कर भगवान श्रीकृष्ण पर हमला किया। तब श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। लेकिन राधारानी ने श्रीकृष्ण को बताया कि उन्होंने जब अरिष्टासुर का वध किया तब वह गौवंश के रूप में था इसलिए उन्हें गौवंश हत्या का पाप लगा है। तब इस पाप से मुक्ति का उपाय करने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुुरी से एक कुंड जिसका नाम श्याम कुंड था उसे खोदा और उसमें स्नान किया। तब ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री राधा रानी ने भी श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड खोदा उसी का नाम राधा कुंड है. उन्होंने उसमें स्नान भी किया. कहते हैं स्नान करने के बाद राधा जी और श्रीकृष्ण ने वहां महारास रचाया जिससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने राधा को वरदान मांगने को कहा. तब राधा जी ने कहा कि जो भी इस तिथि को राधा कुंड में स्नान करेगा उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। श्री कृष्ण ने यही वरदान राधा जी को दिया. उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी.