मान्यता है कि नवरात्रि के पांचवे दिन मां दुर्गा अपने मायके आती हैं और दशमी तिथि तक यहीं पर रहती हैं जहां उनकी खूब देखभाल की जाती है, उन्हें तरह तरह के भोग लगाए जाते हैं, उन्हें प्रसन्न रखने की हर कोशिश की जाती है. इस दौरान कई तरह की परंपराओं की झलक देखने को मिलती है. उन्हीं में से एक है धुनुची नृत्य जो दुर्गा पूजा का एक अटूट हिस्सा है. लेकिन ये धुनुची नृत्य है क्या और दुर्गा पूजा में इसका इतना महत्व क्यों है...इसी पर पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट
क्या है धुनुची नृत्य?
धुनुची नृत्य या धुनुची नाच बंगाल की एक बहुत ही प्राचीन परंपरा है जिसकी झलक हर दुर्गा पूजा पंडाल में देखी जा सकती है. दरअसल, धुनुची मिट्टी का एक पात्र होता है. जिसमें सूखा नारियल, जलता कोयला, कपूर और थोड़ी सी हवन सामग्री रखी जाती है. इसी मिट्टी की धुनुची को हाथ में पकड़कर नृत्य करने की कला धुनुची नाच कहलाती है. कुछ श्रद्धालु तो इस धुनुची को मुंह में भी पकड़कर नृत्य करते हैं. वो भी बंगाल के स्थानीय ढोल और नगाड़ों की थाप पर.
क्या है धुनुची नृत्य का महत्व
दुर्गा पूजा में इस नाच की परंपरा काफी प्राचीन है. और इसका काफी महत्व भी है. माना जाता है कि धुनुची नृत्य वास्तव में शक्ति का परिचायक है. और इसका संबंध महिषासुर वध से जुड़ा है. पुराणों में जिक्र है कि अति बलशाली महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने मां की स्तुति की थी. और मां ने असुर के वध से पहले अपनी ऊर्जा और शक्ति को बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य किया था. यह परंपरा आज भी कायम है. आज भी सप्तमी से ये नाच शुरु हो जाता है और अष्टमी व नवमी को भी किया जाता है. धुनुची से ही मां दुर्गा की आरती भी उतारी जाती है.
बंगाल के लगभग हर पूजा पंडाल में होता है धुनुची नाच
ये नृत्य इतना लोकप्रिय है कि दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल के हर पूजा पंडाल में इस नृत्य की झलक आसानी से देखी जा सकती है. खास बात ये है कि इस नृत्य की कोई प्रैक्टिस नहीं होती और ना ही ट्रेनिंग बल्कि श्रद्धालु इसे देखकर ही इतने उत्साहित हो जाते हैं कि इसे करने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं. और फिर पूरी श्रद्धा से मां को समर्पित ये रस्म निभाई जाती है.