कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हर साल धनतेरस का पर्व मनाया जाता है और इस दिन विशेष रूप से भगवान धनवंतरि की पूजा का विधान है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी दिन यमराज यानि यम देवता की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है और इसके पीछे एक विशेष कारण भी है. 


स्कंदपुराण में मिलता है ज़िक्र


धनतेरस के दिन यम पूजा का महत्व एक श्लोक के द्वारा स्कंदपुराण में भी बताया गया है. कहा गया है -


  “कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे। यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति।”


जिसका अर्थ है कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी पर सांयकाल के वक्त घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप जलाया जाए तो अकाल मृत्यु का निवारण होता है। 


पद्मपुराण में बताया गया है दीपदान का महत्व


सिर्फ स्कंदपुराण में ही नहीं बल्कि पद्मपुराण में भी इस दिन यम पूजा का महत्व वर्णित है.   


“कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके। यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।”


इस श्लोक का अर्थ है - कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन यमराज के लिए दीप देना चाहिए, लेकिन घर के भीतर नहीं बल्कि घर के बाहर जाकर दीप दान करना चाहिए. इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है। 


यम की पूजा से जुड़ी है यह कथा


कार्तिक मास की त्रयोदशी के दिन यमराज की पूजा से जुड़ी एक कथा भी है. जिसके मुताबिक  एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा था कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण लेते समय किसी पर दया आई है।? तब वो बोले हां एक बार ऐसा हुआ था। उन्होंने बताया - हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तो नक्षत्र गणना के अनुसार तय हुआ था कि यह बालक अपने विवाह के चार दिन बाद ही मर जाएगा। जब राजा को यह बात पता चली तो उन्होंने गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर अपने बेटे को बड़ा किया। लेकिन एक दिन महाराजा हंस की युवा बेटी को देखकर वह ब्रह्मचारी युवक उसपर मोह‍ित हो गया और उसने गंधर्व विवाह कर लिया।


चौथे ही दिन हुई मृत्यु


वहीं शादी के चौथे ही दिन उस राजकुमार की मौत हो गई। अपने पति की मृत्यु देखकर पत्नी रोने लगी। उस नवविवाहिता का ऐसा विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा। तब उस राजकुमार के प्राण हरते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे। 


यम ने बताया था अकाल मृत्यु से बचने का उपाय


तब यमदूत के पूछने पर यम ने अकाल मृत्यु से बचने का एक उपाय भी बताया था जिसके मुताबिक धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय कभी नहीं सताता। और इसीलिए आज भी यह परंपरा है कि इस दिन विशेष रूप से यमराज की पूजा करने के साथ साथ दीपदान किया जाता है.