Krishna Bal Leela: श्री कृष्ण की अनोखी बाल लीलाओं को जानकर भक्तिमय हो जाएंगे आप, जन्माष्मटी से पहले पढ़ें उनकी कहानियां
30 अगस्त यानी सोमवार को देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाएगा. जन्माष्टमी पर्व को सिर्फ दो दिन ही बाकी हैं और अभी से चारों ओर माहौल भक्तिमय हो रखा है.
Krishna Bal Leena: 30 अगस्त, सोमवार को देशभर में जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाएगा. जन्माष्टमी पर्व को दो दिन ही बाकी हैं और अभी से चारों ओर माहौल भक्तिमय हो रखा है. लोग श्री कृष्ण की कहानियों और पूजन आदि के बारे में खूब जानना और पढ़ना चाह रहे हैं. बाल गोपाल को सजाने से लेकर उनके पलना सजाने तक की तैयारियां पहले से ही पूरी हो चुकी हैं. उस दिन मंदिरों में भी झांकियां सजाई जाती हैं. श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की कहानियां दर्शाती ये झाकियां लोगों को खूब भाती हैं. ऐसे में हम भी आज लेकर आए हैं बाल गोपाल की ऐसी ही कुछ बाल लीलाएं, जिन्हें पढ़कर आप भावविभोर हो जाएंगे.
भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला (shri krishna baal leela)
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव और देवकी के गर्भ से कारगार में हुआ था. वासुदेव ने श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा के यहां दे दिया था, जहां यशोदा ने अपने लल्ला कान्हा को बड़े ही लाड़ प्यार से पाला. भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही नटखट थे. जितना यशोदा मैया और नंद लाला उनके नटखट अंदाज से परेशान थे, उतना ही वहां के गांव वाले भी. कृष्ण जी अपने मित्रों के साथ मिलकर गांव वालों का माखन चुरा कर खा जाते थे, जिसके बाद गांव वाले उनकी शिकायत मैया यशोदा के पास लेकर पहुंच जाते थे. इस वजह से उन्हें अपनी मैया से डांट भी खानी पड़ती थी.
कालिया नाग का वध (kaliya naam vadh)
कालिया नाग का वध श्री कृष्ण की प्रचलित बाल लीलाओं में से एक है. एक बार श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद से खेल रहे थे. अचानक गेंद युमना नदी में चली गई और बाल गोपल के सारे मित्रों ने मिलकर उन्हें ही नदी से गेंद लाने को भेज दिया. बाल गोपाल भी एकदम से कदम्ब के पेड़ पर चढ़ कर यमुना में कूद गए. वहां उन्हें कालिया नाग मिला. श्री कृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ मिलकर जहरीले कालिया नाग का वध कर दिया
गांव की गोपियों के साथ रासलीला (rasleela with gopiyan)
भगवान श्री कृष्ण का जहां राधा जी के साथ एक खास रिश्ता था, वहीं गांव की गोपियों से भी उनकी खूब बनती थी. कृष्ण की बंसी की धुनें राधा को खूब भाती थीं. पूरे गांव में राधा-कृष्ण की रासलीलाएं खूब चर्चित हैं. किसी भी तीज-त्योहर पर खूब नाचते-गाते दिखाई देते थे. गांव की गोपियां भी श्री कृष्ण की बांसुरी की खूब दीवानी थी. श्री कृष्ण का आकर्षित चेहरा एकदम से गोपियों को अपनी ओर आकर्षित करता था. जो कि पूरे गांव में खूब प्रचलित थी.
गोवर्धन पर्वत की कहानी (gowardhan parwat story)
गोवर्धन पर्वत की कहानी से भी हर कोई परिचित है. जो कि उनकी प्रचलित लीलाओं में से एक है. दरअसल, इंद्र देव श्री कृष्ण की लीलाओं से अंजान ते और उन्होंने गुस्से में गांव में बहुत तेज बारिश कर दी. गांव वालों को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया और सबी मथुरावासियों को उसके नीचे शरण दे दी. सात दिन तक बिना कुछ खाए श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को उटाए खड़े रहे. और आठवें दिन बारिश रुकने पर गांववासियों को बाहर निकाला. कार्तिक मास में अन्नकुट की पूजा भी श्री कृष्ण ने ही आरंभ कराई थी.
कंस का वध (kansh vadh)
देवकी और वासुदेव की विदाई के समय ही कंस को आकाशवाणी हो गई थी कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का वध करेगा. इसके बाद से कंस से कई प्रयास किए, ताकि आठवें बच्चे को धरती पर ही न आने दिया जाए. लेकिन भगवान विष्णु ने ही कंस के वध के लिए श्री कृष्ण का अवतार धारण किया था. कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए कई उपाय अपनाए, लेकिन वे सभी में विफल रहा. श्री कृष्ण और बलराम के अद्भुत पराक्रम को देखकर कंस ने उन्हें एक पलवान के हाथों मरवाना तय किया. इसके लिए कंस ने श्री कृष्ण और बलराम को पलवान से लड़ने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन उन्होंने उस पलवान को मार दिया और कंस का भी वध कर, वासुदेव और देवकी को कारगार से मुक्त करवाया.
कंस के वध के बाद कृष्ण और बलराम शिक्षा के लिए अपने गुरू के आश्रम चले गए. कुछ दिन श्री कृष्ण ने द्वारका में ही बिताए. इसके बाद महाभारत का ऐतिहासिक युद्द पांडवों और कौरवों के बीच लड़ा गया, जिसका नेतृत्व श्री कृष्ण ने किया.