Mahabharat : जुआ खेलने में दो कारणों से हारे धर्मराज, दुर्योधन का यह तरीका अपनाते तो निश्चित होती जीत
महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की चीरहरण से लाज तो बचाई, लेकिन उनके देर से आने और पांडवों की मदद नहीं करने के आरोपों का भी सामना करना पड़ा.
Mahabharat : हस्तिनापुर की राजसभा में राजपाट छीनने के लिए छल से हराए जा रहे पांडव और दांव में हारे जाने के बाद अपमानित की गई द्रौपदी को देखकर पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी मुंह झुकाए बैठे रहे. द्रौपदी को घसीटकर लाया जा रहा था तो भी उन्हें अनुमान नहीं था कि उनका चीरहरण होगा. मगर जब दुशासन को भरी सभा में द्रौपदी की साड़ी उतारने को कहा गया तो द्रौपदी ने अपने सबसे प्रिय सखा श्रीकृष्ण को कुछ इस तरह पुकारा... ‘हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम’.
इस पर श्रीकृष्ण उनकी साड़ी को अनंत करते गए, जिसे खींचते-खींचते दुशासन वहीं बेहोश हो गया. मगर उद्धव गीता में श्रीकृष्ण के सखा उद्धव कहते हैं, कृष्ण, आप पांडवों के प्रिय थे, आप भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं फिर भी आपने युधिष्ठिर को जुआ खेलने से रोका नहीं? छल से हराए जा रहे धर्मराज के पक्ष में भी खेल को नहीं मोड़ा. जब उन्होंने भाइयों को दांव पर लगाना शुरू किया तो भी आप सभा में पहुंच सकते थे, लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया? द्रौपदी का शील साड़ी उतारे जाने के बाद कैसे बचा, आपने क्या बचाया? इतने बड़े संकट में भी अपनों की सहायता नहीं की. क्या यही धर्म है?
मुस्कुराते हुए श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा, सृष्टि का नियम है कि हमेशा विवेकवान ही जीतता है. द्यूत क्रीड़ा के वक्त दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं, इसीलिए वे हारे. दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसा-धन तो बहुत था, लेकिन पासों का ज्ञान नहीं, लेकिन उसने विवेक इस्तेमाल किया और अपनी ओर से मामा शकुनि को खिलाया. धर्मराज भी ऐसा कर सकते थे, वे दुर्योधन को प्रस्ताव रख सकते थे कि उनकी तरफ से मैं यानी श्रीकृष्ण खेलूंगा. अब विचार करो कि शकुनि और मैं खेलते तो कौन जीतता? पासे के अंक कौरवों के अनुसार आते या मेरे?
इतना ही नहीं उन्होंने विवेक और शून्यता से भरी एक और गलती की, उन्होंने मुझसे प्रार्थना की थी कि मैं तब तक सभाकक्ष में न आऊं, जब तक मुझे बुलाया न जाए, दरअसल वह अपने दुर्भाग्य का खेल मुझसे छुपकर खेलना चाहते थे. नहीं चाहते थे, मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं. मुझे सभाकक्ष में आने की अनुमति नहीं थी, फिर भी मैं बाहर इंतजार कर रहा. भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए और सिर्फ अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे. दुशासन द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटता सभाकक्ष में लाया तो द्रौपदी सामर्थ्य अनुसार जूझती रही फिर भी मुझे नहीं पुकारा. उन्हें मेरी याद तब आई, जब दुशासन ने उसे निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया. जब उन्होंने ‘हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम’ की गुहार लगाई, तब मुझे उनकी रक्षा का मौका मिल पाया. इस स्थिति में मेरी गलती क्या है?” उद्धव सृष्टि में हरेक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर चलता है.
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