Krishna Chandra thakur ji Biography in Hindi: श्रीकृष्ण चंद्र शास्त्री (ठाकुर जी) एक प्रसिद्ध कथावाचक हैं. वैसे तो अध्यात्मिक जगत से जुड़े बहुत से कथावाचक हैं, लेकिन कहा जाता है कि कृष्ण चंद्र ठाकुर जी बहुत ही अद्भुत तरीके से कथा सुनाते हैं. जब ये भागवत कथा सुनाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि, इनकी वाणी में साक्षात सरस्वती जी का वास है.


कृष्ण चंद्र ठाकुर जी के संत्संग में कथा सुनने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है. तो चलिए आपको बताते हैं ऐसे ही प्रसिद्ध कथावाचक कृष्ण चंद्र ठाकुर जी की संपूर्ण जीवनी के बारे में.



कृष्ण चंद्र ठाकुर जी का जन्म और परिवार (Krishna Chandra Thakur ji Birth and Family)


श्रीकृष्ण चंद्र ठाकुर जी का जन्म वृंदावन के पास स्थित लक्ष्मणपुर नामक गांव में 01 जुलाई 1960 में हुआ. इनके पिता का नाम पंडित श्रीराम शरणजी उपाध्याय और माता का नाम चंद्रवती देवी उपाध्याय था. माता-पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृति के थे, जिसका प्रभाव कृष्ण चंद्र ठाकुर जी पर भी पड़ा. अपने माता-पिता से ठाकुर जी बचपन में रामायण की कहानियां सुना करते थे.


इनके माता-पिता ने अपना संपूर्ण जीवन पवित्र महाकाव्य और गो सेवा को समर्पित कर दिया. फिलहाल कृष्ण चंद्र ठाकुर जी के परिवार में इनकी पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा है. बेटे का नाम इंद्रेश जी महाराज है, जोकि श्री भागवत कथा करते हैं.


कृष्ण चंद्र ठाकुर जी की शिक्षा (Krishna Chandra Thakur ji Education)


कृष्ण चंद्र ठाकुर जी ने प्रारंभिक शिक्षा श्री रामानुजाचार्य जी से प्राप्‍त की और साथ ही भागवत गीता, वाल्‍मीक रामायण आदि जैसे पवित्र ग्रन्थों का अध्‍ययन कर आध्‍यात्‍मिक ज्ञान को प्रखर बनाया.


कृष्ण चंद्र ठाकुर जी के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य (Krishna Chandra thakur ji Life Interesting Facts)



  • कृष्‍ण चन्‍द्र ठाकुर जी ने पहली बार 1975 मुंबई में भागवत कथा की. उस वक्त वे केवल 15 वर्ष के थे.

  • इनके कथा कहने की शैली इतनी अद्भुत थी कि, सुनने वाले श्रोता मंत्रमुग्‍ध हो गए.

  • कृष्ण चंद्र ठाकुर जी अबतक करीब एक हजार से अधिक बार श्रीराम कथा और श्री भागवत कथा का सरस प्रवाह कर चुके हैं.

  • कृष्ण चंद्र ठाकुर जी ने एक पुस्‍तक भी लिखी, जिसका नाम ‘श्री मद् भागवत कथाकार’ है. इसमें इन्होंने श्रीमद् भागवत को सरल शब्‍दों में समझाया है.

  • कृष्ण चंद्र ठाकुर जी के गुरू पूज्‍य श्री रामानुजाचार्य जी द्वारा ही इन्हें ‘ठाकुर जी’ की उपाधि प्राप्त हुई और साथ ही इन्हें ‘भागवत भास्‍कर’ का नाम दिया गया.


कृष्ण चंद्र ठाकुरजी ने बचपन में ही उठाई बड़ी जिम्मादारियां


कृष्ण चंद्र ठाकुर जी का जन्म एक छोटे से गांव में हुआ. वहां भरण-पोषम के लिए बहुत अच्‍छी व्‍यवस्‍थायें नहीं थी.ठाकुर जी कम उम्र में ही पारिवार की आर्थित स्थिति समझ गए और उन्होंने किसी तरह पिता को आर्थिक सहयोग करने की सोची. इसके बाद वे रासलीला करने लगे, जिससे उनकी आध्‍यात्‍मिक शिक्षा भी चल ही रही थी और साथ ही आमदनी भी हो रही थी. इस धन को वे अपने घर पर आर्थिक सहयोग के तौर पर दिया करते थे. घर की जिम्मेदारियां उठाने के साथ ही इन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी.


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