Krishna leela: कृष्ण की ईजाद की गई कलरीपायट्टु कला बन गई मार्शल आर्ट्स
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण 64 कलाओं में दक्ष थे. श्रीकृष्ण ने ही कलरीपायट्टु नामक युद्ध कला खोजी, जो कालांतर में मार्शल आर्ट में विकसित हुई. आइए जानते हैं कि कलरीपायट्टु कब और कैसे ईजाद हुई.
Krish leela : श्रीकृष्ण अपने काल के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ द्वंद्व-मल्ल युद्ध में भी माहिर थे. श्रीकृष्ण के धनुष का नाम 'सारंग' था तो खड्ग 'नंदक', गदा 'कौमौदकी' और शंख 'पाञ्चजन्य' था, यह गुलाबी था. महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण के पास दो रथ थे, कई अस्त्र-शस्त्र से लैस कृष्णजी के पास महाभारतकाल की सबसे विशाल और खतरनाक सेना थी. मगर बाल्यकाल में कालयवन समेत बाकी राक्षसों से द्वंद्व के दौरान उन्होंने युद्ध कौशल की कला कलरीपायट्टु खोजी. इसके उपयोग से ही वह खुद को कालयवन से अपनी रक्षा कर पाए. बिना अस्त्र-शस्त्रों के लड़ी जाने वाली इस विधा को कालांतर में मार्शल आर्ट माना गया.
ऐसे थे योद्धा कृष्ण
एक पालक और न्यायकर्ता के रूप में श्रीकृष्ण के कई रूप दिखते हैं, लेकिन योद्धा के तौर पर कम. ऐसे में यह जानना रोचक है कि बतौर योद्धा श्रीकृष्ण का धारण करते थे. पौराणिक कथाओं के अनुसार कृष्ण के पास दो बहुत दिव्य रथ गरूड़ध्वज और जैत्र थे. गरुड़ध्वज पर सारथी के रूप में दारुक थे तो इस रथ में चलने वाले अश्वों का नाम शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प था. दूसरे रथ जैत्र पर जैत्र नामक सेवक भी था.
गरुड़ध्वज से ही रुक्मिणी हरण कर लाए थे कृष्ण
श्रीमद्भागवत महापुराण में उल्लेख है कि गरुड़ध्वज रथ बेहद तेज गति से चलने वाला रथ था, रुक्मिणी हरण इसी रथ से किया गया था. यह रथ आंधी के वेग समान मंदिर के पास क्षणभर के लिए रुका. इतने में श्रीकृष्ण ने राजकुमारी रुक्मिणी को तुरंत रथ पर बिठा लिया और रथ के अश्व पूरे वेग से लगभड़ उड़ चले. माना जाता है कि श्रीकृष्ण गरुड़ध्वज रथ स्वर्ग से लाए थे. आधुनिक बिहार के राजगीर में कुछ जगहें हैं, जिनका रिश्ता महाभारत काल से है, इनमें एक हैं श्रीकृष्ण के रथ के निशान, इसे लेकर प्रचलित है कि श्रीकृष्ण महाभारत काल के दौरान रथ लेकर स्वर्ग से यही उतरे थे.
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