Kumbh Sankranti 2022: कुंभ संक्रांति के दिन सूर्य बदलेंगे अपनी चाल, सिर्फ इस एक कार्य को करने से ही प्राप्त होगी सूर्य देव की कृपा
Kumbh Sankranti 2022: सूर्य देव का एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहा जाता है. और जिस राशि में सूर्य ग्रह प्रवेश करते हैं उसी राशि की संक्रांति होती है.
Kumbh Sankranti 2022: सूर्य देव (Surya Dev) का एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहा जाता है. और जिस राशि में सूर्य ग्रह प्रवेश करते हैं उसी राशि की संक्रांति होती है. 13 फरवरी के दिन सूर्य ग्रह मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं इसलिए इसे कुंभ संक्रांति (Kumbh Sankranti 2022) के नाम से जाना जाएगा. सूर्य इस राशि परिवर्तन का प्रभाव कई राशियों के पर पड़ेगा और इन जातकों के जीवन में ये बदलाव देखने को मिलेंगे.
13 फरवरी के बाद सूर्य देव के राशि परविर्तन से कई राशियों के जातकों के बिगड़े काम बनने लगेंगे. वहीं, रोजगार और कारोबार में भी उन्नति और प्रगति के अवसर मिलेंगे. बता दें कि वर्तमान समय में गुरु भी कुंभ राशि में उपस्थित हैं. जो कि कुंभ राशि के जातकों के लिए शुभ संयोग बन रहा है. अगर आप भी कुंभ संक्रांति के दिन सूर्य देव (Surya Dev) की कृपा पाना चाहते हैं तो इस दिन सूर्य चालीसा का पाठ (Surya Chalisa Path) अवश्य करें.
सूर्य चालीसा पाठ (Surya Chalisa Path)
दोहा:
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
चौपाई:
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
दोहा:
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।
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