ज्योतिष शास्त्र में कुंडली में व्याप्त अलग-अलग दोषों को दूर करने के लिए कई उपायों का जिक्र किया गया है. लेकिन पुराणों में श्रीभृगु संहिता के सर्वारिष्ट निवारण का उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि इसके पाठ से व्यक्ति की कुंडली में मौजूद सभी दोषों से मुक्ति मिलती है. इस पाठ को किसी भी भगवान या देवी-देवता के सामने बैठकर किया जा सकता है.
मान्यता है कि पाठ शुरू करने से पहले दीप-धूप आदि से पूजन किया जाता है. इसके पश्चात ही इस स्तोत्र का पाठ करना फलदायी होता है. पाठ के दौरान “स्वाहा” और “नमः” का उच्चारण करते हुए घी मिश्रित गुग्गुल से आहुति दें. इससे जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है.
पूजा विधि: सुबह के समय नियमित रूप से घर के मंदिर में साफ सफाई के बाद इसका पाठ करें. लाल रंग का कपड़ा बिछाने के बाद पाठ की शुरुआत करें.
आवश्यक सामग्री : लाल या भगवा रंग का सवा मीटर कपड़ा, नवग्रह यंत्र, गणपति की तस्वीर या मूर्ति (शिव परिवार की भी ले सकते हैं), तांबे की गड़वी पानी के लिए, धूप, दीप, मिष्ठान, सिंदूर, आदि लें. एक थाली में नवग्रह यंत्र रखें और पंचोपचार से गणपति पूजन करें. इसके बाद पाठ करें.
।। श्री भृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र।।
ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐगुरवे नमः,ॐ श्रीकृष्णाय नमः,ॐ बलभद्राय नमः,ॐ श्रीरामाय नमः,ॐ हनुमते नमः,ॐ शिवाय नमः,ॐ जगन्नाथाय नमः,ॐ बदरीनारायणाय नमः,ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः,ॐ चन्द्राय नमः,ॐ भौमाय नमः,ॐ बुधाय नमः,ॐ गुरवे नमः,ॐ भृगवे नमः,ॐ शनिश्चराय नमः,ॐ राहवे नमः,ॐ पुच्छानयकाय नमः,ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।
ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि।ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते! भद्रे! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच,राज-द्वारे जयं कुरू कुरू,व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं,रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय,पूर्णा आयुः कुरू कुरू,स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू,हुम् फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।
ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः।
ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्।श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।। शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू।
मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।। सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः।
हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।
एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं।
शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।।
य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना।
तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।।
अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्।
संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।।
सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः।
द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।
किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा।
लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।।
ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि।
शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।।
नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया।
भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।।
इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे।
पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।।
विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः।
सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।
।। श्रीभृगु संहिता सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र सम्पूर्ण।।
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