Buddha Dharma, Kushinagar: बौध धर्म दुनिया का तीसरा बड़ा धर्म है. बौद्ध धर्म की उत्पत्ति ईसाई और इस्लाम धर्म से भी पहले की है. बौद्ध धर्म में अभ्यास और जागृति का विशेष महत्व बताया गया है. बौद्ध धर्म में कर्म को प्रधानता प्रदान की गई है. बौद्ध धर्म के अनुसार कर्म से ही जीवन में सुख और दुख स्थिति उत्पन्न होती है. बौद्ध धर्म में मोक्ष को भी वरियता प्रदान की गई है. इसके लिए बौद्ध धर्म में बताया गया है कि सभी कर्म चक्रों से मुक्त हो जाना ही मोक्ष है. कर्म से मुक्त होना या ज्ञान प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग को अपनाते ही मनुष्य को चार आर्य सत्य को समझते हुए अष्टांग मार्ग का अभ्यास कहना चाहिए, इसी से मोक्ष की प्राप्ति संभव है.  बौद्ध धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ को त्रिपिटक कहा जाता है. भगवान बुद्ध को बौद्ध धर्म का संस्थापक माना गया है. इस धर्म में दो संप्रदाय हैं, जिन्हें हिनयान और महायान कहा जाता है. बौद्ध धर्म के प्रमुख चार तीर्थ स्थल हैं-



  1. लुंबिनी 

  2. बोधगया

  3. सारनाथ

  4. कुशीनगर


भगवान बुद्ध की जीवन कथा
भगवान बुद्ध को गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ और तथागत नामों से भी जाना जाता है. भगवान बुद्ध के पिता कपिलवस्तु के राजा थे और इनका नाम शुद्धोदन था. भगवान बुद्ध की माता का महामाया देवी था. भगवान बुद्ध की पत्नी का नाम यशोधरा और पुत्र का नाम राहुल था. भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी में हुआ था. इन्हें बोध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई. सारनाथ में भगवान बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व हुआ था.


कुशीनगर का इतिहास
कुशीनगर का वर्णन इतिहास में प्रमुखता से मिलता है. चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान ने भी इस प्राचीन नगर के बारे में विस्तार से बताया है. वाल्मीकि रामायण  में भी कुशीनगर का वर्णन मिलता है. यह स्थान त्रेतायुग में भी विकसित था और भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी, इस कारण इसे 'कुशावती' नाम से जाना जाता था.


भगवान बुद्ध की लेटी हुई मूर्ति
महापरिनिर्वाण विहार या निर्वाण मंदिर कुशीनगर का प्रमुख आकर्षण है. कुशीनगर के इस मंदिर में भगवान बुद्ध की 6.10 मीटर लंबी लेटी हुई प्रतिमा स्थापित है. इस पर पीले रंग के वस्त्र हैं. माना जाता है कि 1876 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा प्राप्त हुई थी. इस प्रतिमा का संबंध पांचवीं शताब्दी से है.


बौद्ध धर्म में पीले रंग का महत्व
बौद्ध धर्म में पीले रंग को विशेष महत्व प्रदान किया गया है. इसके पीछे एक दर्शन भी है. इस रंग को पवित्रता से भी जोड़ कर देखा जाता है. पीले रंग को शुभ माना गया है. पीला रंग सत्कार और उपकार का भी प्रतीक है. बौद्ध धर्म में इस रंग को आत्मत्याग का प्रतीक माना गया है. आत्म त्याग का अर्थ है कि खुद को दुनियावी चीजों से दूर रहकरन माया-मोह के बंधन से मुक्त हो जाना. तभी ईश्वर की प्राप्ति का द्वार खुलता है.


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