Laddu Gopal Chatti 2021: जन्माष्टमी के छह दिन बाद लड्डू गोपाल की छठी मनाई जाती है. छठी के दिन लड्डू गोपाल की विधि पूर्वक पूजा की जाती है. उन्हें स्नान आदि करा के साफ वस्त्र पहनाएं जाते हैं और उन्हें भोग लगाया जाता है. इस दिन लड्डू गोपाल का नामकरण भी किया जाता है. कहते हैं श्री कृष्ण को कई नामों से जाना जाता है. ठाकुर जी, कान्हा, लड्डू गोपाल, माधव, नंदलाला, देवकीनंदन आदि कई नाम है. उस दिन इनमें से कोई एक नाम रखा जाता है, और उन्हें उसी नाम से पुकारा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान श्री कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल कैसे पड़ा? नहीं, तो चलिए डालते हैं इस पर एक नजर...
कैसे पड़ा श्री कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल (shri krishna name laddu gopal resaon)
कहते हैं कि ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त कुम्भनदास थे. कुम्भनदास का एक पुत्र था- रघुनंदन. कुंभनदास हमेशा श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहता था. और भगवान की सेवा के चलते वे उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाते थे. एक बार उन्हें वृंदावन से भागवत करने का न्यौता आया. पहले तो कुंभनदास ने उन्हें मना कर दिया फिर लोगों के बहुत ज्यादा जोर देने पर वे मान गए. उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके जाएंगे और रोजाना कथा करके वापस लौट आएंगे. कुंभनदास ने भोग की सारी तैयारी करके अपने बेटे रघुनंदन को समझा दिया कि ठाकुर जी (thakur ji) को भोग लगा देना और कथा करने के लिए चले गए.
रघुनंदन ने भोजन की थाली ठाकुर जी के आगे रखी और उनसे भोग लगाने का आग्रह किया. उसके बाल मन में ये छवि थी कि ठाकुर जी अपने हाथों से भोजन करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बहुत देर इंतजार करने के बाद जब भोजन की थाली ऐसे ही रखी रही, तो रघुनंदन जोर से रोने लगा और पुकारा कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ. रघुनंदन की इस पुकार के बाद ठाकुर जी ने बालक का रुप धारण किया और भोजन करने बैठ गए. जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कह दिया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया. कुंभनदास को लगा बच्चे को भूख लगी होगी वही सारा भोजन खा गया होगा. लेकिन अब तो ये रोज की कहानी हो गई थी. अब कुंभनदास को शक होने लगा. तो उन्होंने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रखे और छुपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है.
लड्डू की थाली रघुनंदन ने ठाकुर जी के आगे रखी तो उन्होंने बालक का रुप धारण किया और लड्डू खाने लगे. कुंभनदास ये सब छुपकर देख रहा था. जैसे कि ठाकुर जी बालक के रुप में प्रकट हुए कुंभनदास भागता हुआ आया और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे. उस समय लड्डू गोपल के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू मुंह में जाने ही वाला था, लेकिन इतने में वे जड़ हो गए. उसके बाद से ही उनके इस रुप की पूजा की जाती है. और उन्हें लड्डू गोपाल (laddu gopal) कहा जाने लगा.