Laddu Gopal Chatti 2021: जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हो चुका है. अब छह दिन के बाद श्री कृष्ण की छठी मनाई जाएगी. इस साल 4 सितंबर को लड्डू गोपाल की छठी का पर्व मनाया जाएगा. बता दें कि श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को लड्डू गोपाल कहते हैं. इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है. इस दिन लोग कढ़ी-चावल बनाते हैं. लड्डू गोपाल को स्नान करवा के पीले रंग के वस्त्र पहनाते हैं और माखन-मिश्री का भोग लगाते हैं. इस दिन भगवान का नाम करण भी किया जाता है. श्री कृष्ण को लड्डू गोपाल, ठाकुर जी, कान्हा, माधव, नंदलाला, देवकीनंदन भी कहते हैं. छठी वाले दिन इनमें से कोई भी एक नाम लड्डू गोपाल का रख दिया जाता है. आइए डालते हैं एक नजर कान्हा की छठी मनाने के तरीके पर-


यूं मनाएं नंदलाला की छठी (How to Celebrate Kanha Chatti)
जन्माष्टमी के छह दिन बाद कन्हैया की छठी मनाई जाती है. कहा जाता है कि जो लोग घर में लड्डू गोपाल रखना चाहते हैं जन्माष्टमी का दिन इस के लिए सबसे उत्तम है. छठी के दिन सुबह स्नान करके साफ वस्त्र पहन कर कान्हा को पंचामृत से स्नान करवाएं. पंचामृत बनाने के लिए दूध, घी, शहद और गंगाजल को मिलाकर पंचामृत बना लें. इसके बाद शंख में गंगाजल भरकर एक बार फिर से कान्हा को स्नान करवाएं. इसके बाद उन्हें पीले रंग के वस्त्र पहनाएं और उनका श्रृंगार करें. लड्डू गोपाल को पीला रंग अधिक प्रिय है, इसलिए कोशिश करें कि उन्हें पीले रंग के वस्त्र ही पहनाएं. 


इसके बाद कान्हा जी को माखन-मिश्री का भोग लगाएं और उनका नाम करण करें. ऊपर बताए नामों में से कोई भी नाम चुन कर उन्हें उसी नाम से पुकारें. कान्हा के चरणों में घर की चाबी सौंप दें. इसके बाद लड्डू गोपाल की कथा करें. ऐसा करने से नंदलाला की कृपा हमेशा आप पर बनी रहेगी. इस दिन घर में कढ़ी-चावल जरूर बनाएं. 


क्यों मनाते हैं छठी (why celebrate laddu gopal chatti)
श्री कृष्ण का जन्म कारगार में हुआ था और उन्हें वासुदेव ने रातों-रात की यशोदा के घर छोड़ दिया था. कंस को जब ये बात पता लगती है तो वे पूजना को श्री कृष्ण को मारने के लिए गोकुल यशोदा के पास भेजता है. और ये आदेश देता है कि गोकुल में जितने भी 6 दिन के बच्चे हैं उन्हें मार दिया जाए. पूतना के गोकुल पहुंचते ही यशोदा बालकृष्ण को छिपा देती हैं. श्री कृष्ण को पैदा हुए छह दिन हो गए थे, लेकिन उनकी छठी नहीं हो पाई थी. तब तक उनका नामकरण भी नहीं हो पाया था. इसके बाद यशोदा ने 364 दिन बाद सप्तमी को छठी पूजन किया और तभी से श्री कृष्ण की छठी मनाई जाने लगी. इतना ही नहीं, तभी से बच्चों की भी छठी की परंपरा शुरू हो गई.


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