Laddu Holi 2023: मथुरा में आज लड्डू होली, यहां गुलाल की बजाय एक दूसरे पर बरसाते हैं लड्डू, खास है वजह
Laddu Holi 2023: 27 फरवरी 2023 को यानी कि आज मथुरा के बरसाना में लड्डू मार होली खेली जाएगी. जानते हैं राधा रानी की नगरी बरसाना में लड्डू मार होली की खासियत और कैसे शुरू हुई ये परंपरा.
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Laddu Holi 2023: ब्रज में होली का त्योहार शुरू हो चुका है. 27 फरवरी 2023 को यानी कि आज मथुरा के बरसाना में लड्डू मार होली खेली जाएगी. ब्रज में होली का त्योहार विश्व प्रसिद्ध है. यहां देश-विदेश से लोग होली की रौनक देखने आते हैं. यहां कहीं फुलेरा दूज से होली का पर्व शुरू होता है और चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा पंचमी तिथि यानी रंग पंचमी तक ये त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. कहीं लठ्ठमार होली, छड़ीमार होली तो कहीं फूलों से होली खेली जाती है. आइए जानते हैं राधा रानी की नगरी बरसाना में लड्डू मार होली की खासियत और कैसे शुरू हुई ये परंपरा.
बरसाना की लड्डू मार होली (Laddu Holi 2023 in Barsana)
बरसाना के श्री जी मंदिर में आज लड्डूओं की होली से इस त्योहार की शुरुआत हो चुकी है. यहां के श्रीजी मंदिर में लोग एक दूसरे पर रंग गुलाल की बजाय लड्डू फेंककर होली खेलते हैं. कहा जाता है कि नंदगांव से होली खेलने के लिए बरसाना आने का आमंत्रण स्वीकारने की परंपरा इस होली से जुड़ी हुई है, जिसका आज भी पालन किया जा रहा है. मान्यता है कि इस तरह होली खेलने से रिश्तों में प्रेम और मिठास बढ़ती है. लड्डू होली के अगले दिन यानी 28 फरवरी को बरसाना में लठ्ठमार होली खेली जाएगी.
कैसे शुरू हुई लड्डू मार होली की परंपरा (Laddu Holi Tradition)
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में राधा रानी के पिता वृषभानु जी नंदगांव में श्रीकृष्ण के पिता को होली खेलने का न्योता देते हैं. बरसाने की गोपियां होली का आमंत्रण पत्र लेकर नंदगांव जाती है. जिसे कान्हा के पिता नंदबाबा सहहर्ष स्वीकार करते हैं. एक पुरोहित के जरिए न्योता स्वीकृति पत्र बरसाना पहुंचाया जाता है. बरसाने में पुरोहित का आदत सत्कार किया जाता है.
क्यों खेली जाती है लड्डू की होली ?
लड्डुओं से पुरोहित का मुंह मिठाया कराया जाता है. इस दौरान कुछ गोपियां उन्हें गुलाल लगा देती हैं. पुरोहित जी के पास गुलाल नहीं था तो वह जवाब में गोपियों पर लड्डू बरसाने लगते हैं. बस तभी से द्वापर युग की यह घटना वर्तमान समय में लड्डू होली के रूप में प्रसिद्ध हो गई. आज भी इस परंपरा निर्वहन किया जाता है.
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