प्रत्येक व्यक्ति धनवान और सुखी होना चाहता है. लेकिन प्रकृृति की सेवा उपासना से ही यह संभव है. महालक्ष्मी स्वयं प्रकृति के हर रूप में विद्यमान रहती हैं. पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी कृष्ण जन्म की कथा में वृंदावन में कहीं जगह न मिलने पर बृज की मिट्टी के कण-कण में बस गईं.


इसी प्रकार गौमाता कामधेनु में सभी देवआतों का वास होने पर और स्थानाभाव उन्होंने गोबर में स्वयं का वास स्वीकार किया. भारतवर्ष में गाय के गोबर को धनधान्य से जोड़कर देखा जाता है. इसीकारण प्रत्येक शुभ अवसर पर घरों को गोबर से लीपा जाता है.


अभिप्राय यह है कि धन की देवी लक्ष्मीजी को बड़ी मंत्रोक्त और तंत्रोक्त उपासना से कहीं अधिक प्रभावी ढंग से सहज प्रकृति पूजा से प्रसन्न किया जा सकता है. जल लक्ष्मीजी को प्रिय है. घर में किसी नल से लगातार पानी रिसने पर धनक्षय होने लगता है. अकारण जल का क्षय करने से लक्ष्मी जी रुष्ट होती हैं.


वर्षा ऋतु में इस तथ्य पर ज्यादा जोर देकर प्रकृति की सेवा कर महालक्ष्मी को प्रसन्न किया जा सकता है. वर्षा जल संग्रहण के अतिरिक्त पौधरोपण, जल निकासी और वाटर हार्वेस्टिंग से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं. इसी प्रकार मानव सेवा के साथ पशु-पक्षियों के लिए अन्न जल का प्रबंध लक्ष्मीजी को प्रसन्न करता है.


पेड़, पौधों, फूलों और फलों में लक्ष्मी विद्यमान हैं. परिवार के लोग परिजन रिश्तेदार और मेहमानों की सेवा लक्ष्मी सेवा है. आर्थिक रूप से कमजोर समाज के लोगों की मदद से विष्णुप्रिया हर्षित होती हैं.