धार्मिक यात्राओं का लक्ष्य मात्र देशाटन नहीं होता है. आस्था से परिपूर्ण ऐसी यात्राएं व्यक्ति को देश समाज और चराचर से सकारात्मकता के साथ जोड़ने में सहायक होती हैं. व्यक्ति घर के बाहर की दुनिया को अधिक बेहतर ढंग से देख पाता है. धार्मिक भाव के कारण वह विनम्र और क्षमाशील रहता है इससे वह तनाव मुक्त रहकर लाभ पर फोकस कर पाता है. अवरोधों और आकस्मिकताओं से परेशान नहीं होता है. लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रेरित रहता है.
ज्योतिष में धार्मिक यात्राओं और भाग्य का एक ही भाव होता है. नवम भाव को इन दोनांे का कारक भाव माना जाता है. लंबी दूरी की यात्राएं और श्रेष्ठ मनोरंजन भी इस भाव से देखे जाते हैं. भाग्य की प्रबलता से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. लक्ष्मीजी की प्रसन्नता व्यक्ति के जीवन में सुख सौख्य और संपन्नता लेकर आती है.
लक्ष्मीजी स्वयं वैभव और संस्कारों की देवी हैं. धर्म से अर्थ की रक्षा होती है और अर्थ से धर्म को बल मिलता है. लक्ष्मी जी इसमें सर्वाधिक सहायक होती हैं.
जो लोग सपरिवार धार्मिक यात्राओं पर जाया करते हैं. महालक्ष्मी की कृपा उन पर सदा बनी रहती है. इन यात्राओं से व्यक्ति चहुंमुखी लाभ प्राप्त करता है. वर्तमान संवारता है. भविष्य को उन्नत करता है। प्रारब्ध के दोषों को दूर कर पाता है.