Mahima Shanidev ki : न्यायकर्ता शनिदेव के सृजन का आधार देव, दानव और मानवों में निष्पक्ष न्यायधिकारी के तौर पर माना गया था, लेकिन कर्मफलदाता के मां छाया के प्रति भावों ने सम्मान, प्रेम और कृतज्ञता का भी सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया. आइए जानते हैं, जन्म से न्यायधिकारी बनने तक मां के प्रति प्रेम, विरह, कष्ट, सुरक्षा और सम्मान के उनके विविध रूप क्या हैं.


मां के तिरस्कार पर पिता पर लगाया ग्रहण
शनिदेव ने जन्म के साथ मां के प्रति प्रेम, सम्मान और सुरक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया. यही वजह थी कि जन्म के बाद सबसे पहले सूर्यदेव ने शनि के रंग, रूप के लिए उनका तिरस्कार कर मां छाया का अपमान किया. इसकी वजह से शनि ने सूर्य को ग्रहण लगा दिया, जो बाद में पिता से कलह का सबसे बड़ा कारण बना.


हर आज्ञा का रखा मान  
पिता से श्रापित होकर शनिदेव मां के आंचल में ढक कर जंगल में छिपकर रह रहे थे. यहां से सूर्यलोक लौटते समय तक मां की आज्ञा को सर्वोच्च स्थान दिया और हर आज्ञा का मान रखा. खुद की पहचान को लेकर मां से कोई प्रश्न न करने की आज्ञा भी उन्होंने कभी नहीं टाली. 


सुरक्षा के लिए सबकुछ न्योछावर
शनिदेव ने जंगल में रहते हुए उन्हें खोजने आए देव और दानवों का सर्वनाश कर मां को पूरी तरह सुरक्षित रखा. मां की अराधना में व्यवधान डालने पर शनि ने अपने ही भाई यम को नहीं बख्शा. इतना ही नहीं, विश्वकर्मा भवन में चक्रवात ने मां को शिकार बनाना चाहा तो पूरे पराक्रम के साथ चक्रवात को खत्म कर मां के प्राण बचाए.


देवराज को भी किया नतमस्तक
मां पर आक्रमण करने वाले चक्रवात को पैदा करने के लिए न्यायसभा में अंतत: इंद्र को दोषी ठहराया गया. मगर सजा के तौर पर इंद्र को सूर्यदेव से माफी मांगनी थी, लेकिन शनि ने देवराज इंद्र को न्याय का हवाला देकर चक्रवात से घायल मां के आगे नतमस्तक होने के लिए मजबूर कर दिया.


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