Ramayan : रामायण से लेकर महाभारत काल तक दिव्यास्त्रों के उपयोग और उनके प्राप्त करने के लिए की गई सिद्धियों की अनेक कथाएं हैं, लेकिन सर्वाधिक चर्चा परशुराम को शिवजी के दिए और श्रीराम के तोड़े धनुष पिनाक और अग्निदेव से अर्जुन को मिले गांडीव की चर्चा होती है. इसके अलावा कृष्ण के पास भी शारंग आया, लेकिन तीनों की धनुष एक ही काल में एक ही बांस से बने. आइए जानते हैं कि तीनो दिव्य धनुषों का निर्माण आखिर कैसे हुआ.


पौराणिक कथाओं के अनुसार कण्व ऋषि एक बार कठोर तप में लीन थे. घनघोर तपस्या के दौरान उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना थी. यहां तक कि बांबी और आसपास की मिट्टी के ढेर पर सुंदर गठीले बांस उग आए थे, इस दौरान जब ऋषि की तपस्या पूरी हुई और ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने ऋषि को कई वरदान दिए और लौटने लगे, तभी ध्यान आया कि कण्व की मूर्धा यानी तालू पर उगे बांस सामान्य नहीं हो सकते हैं, ऐसे में इसका सदुपयोग किया जाना चाहिए. 

ब्रह्माजी ने यह सोचकर उन बांस को काटा और भगवान् विश्वकर्मा को दे दिया, जिन्होंने उससे तीन धनुष पिनाक, शार्ङग और गाण्डीव बनाए. इन तीनों धनुषों को ब्रह्माजी ने भगवान शंकर को समर्पित कर दिया. शिव ने इन्हें इन्द्र को दे दिया और इस तरह इंद्र से पिनाक परशुराम फिर राजा जनक के पास पहुंचा. जहां श्रीराम ने स्वयंवर के दौरान इसे उठाया, लेकिन काफी पुराना होने से यह टूट गया. इसी तरह गा‍ण्डीव वरुणदेव के पास पहुंचा, जहां से अग्निदेव उसे ले गए, लेकिन ‍अग्निदेव की तपस्या कर अर्जुन ने इसे हासिल कर लिया.


शार्ङग धनुष भगवान विष्णु के पास था, समय के साथ यह उनके छठे अवतार और ऋषि ऋचिक के पौत्र परशुराम को मिला. परशुराम ने जीवन का उद्देश्य पूरा करने के बाद उसे विष्णु के अगले अवतार भगवान राम को धनुष दे दिया. राम ने इसे प्रयोग करने के बाद जलमण्डल देवता वरुण को दिया. महाभारत काल में वरुण ने शार्ङग खांडव-दहन के दौरान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण को दे दिया. मृत्यु से ठीक पहले कृष्ण ने यह धनुष महासागर में फेंककर वरुण को वापस लौटा दिया था.


 


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