Jagannath Yatra : भगवान भक्तों के लिए क्या कुछ नहीं करते. ऐसा ही एक उदाहरण है जगन्नाथ जी और उनके परम भक्त और मित्र माधव दास का. माधव दास के लिए दुनिया को रोगों से दूर रखने वाले भगवान जगन्नाथ भी खुद बीमार पड़ जाते हैं. कहा जाता है कि ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथजी के एक परम भक्त माधव दास थे. जोकि अकेले रहा करते थे. भिक्षु जीवन यापन करते थे और सारे काम स्वयं किया करते थे. वह जगन्नाथ जी मित्र मानकर रोज मिलने आया करते थे.


प्रभु और माधव दास एक साथ मिलकर लीलाएं किया करते थे. एक दिन माधव दास अचानक से बीमार हो गए. चूंकि माधव दास अपना काम स्वयं करते थे तो उन्होंने किसी की भी मदद लेने से मना कर दिया. उनका कहना था कि प्रभु स्वयं उनकी रक्षा करेंगे. माधव की तबीयत असाध्य होने लगी और सेवक के रूप में स्वयं जगन्नाथ जी माधव दास के पास पहुंच गए.


होश में आने पर माधव दास को जगन्नाथ जी को पहचनाने में वक्त नहीं लगा. एक दिन माधव दास ने उनसे पूछा कि प्रभु आप तो त्रिलोक के स्वामी हो आप चाहते तो मुझे पल में स्वस्थ कर सकते थे फिर भी आप मेरी सेवा कर रहे हैं. जगन्नाथ जी ने कहा कि मुझसे भक्तों का कष्ट सहा नहीं जाता तो मैं तुम्हारी सेवा करने को आ गया और अपने प्रारब्ध का फल भोगना ही होता है. अगर उसको नहीं भोगा तो उसके लिए अगला जन्म लेना होता है. मैं नहीं चाहता कि तुम्हें जरा से भोग के लिए दोबारा जन्म लेना पड़े. अब तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिनों का रोग बचा है, जिसे तुम मुझे दे दो.


तब से आज तक हर वर्ष भगवान जगन्नाथ प्रभु 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं. वर्ष  में एक बार जगन्नाथ जी को स्नान कराया जाता है, जिसे हम स्नान यात्रा के नाम से जानते हैं. उसके बाद जगन्नाथ जी 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं इस अवधि को अनासारा के रूप में जाना जाता है. 15 दिनों के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.उन्हें जल्द ठीक करने के लिए काढ़ा दिया जाता है. बीमारी के दौरान जगन्नाथजी को फलों के रस, दलिया, औषधियों का भोग लगता है. वह बीमारी से उठने के बाद भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार यात्रा के लिए निकलते हैं. यह यात्रा आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को निकाली जाती है.


 


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